________________ 100 [विपाकसूत्र-प्रथम श्रु तस्कन्ध समासासित्ता तो पडिनिक्खमइ, पडिनिमित्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं क्यासी'गच्छह णं तुभे, देवाणुप्पिया ! सुपइट्ठस्स नयरस्स बहिया एगं महं कूडागारसालं करेह, अणेगखंभसयसंनिविट्ठ जाव पासादीयं करेह, ममं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।' तए णं ते कोडुबियपुरिसा करयल जाव पडिसुणेति, पडिसुणित्ता सुपइटनयरस्स बहिया पच्चस्थिमे दिसोविभाए एगं महं कूडागार-सालं जाव करेंति अणेगखंभसयसंनिविट्ठ जाव पासाइयं, जेणेव सीहोणे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति / १२-तदनन्तर महाराजा सिंहसेन ने श्यामादेवी से इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रिये ! तू इस प्रकार अपहृत मन वाली-हतोत्साह होकर प्रार्तध्यान मत कर / निश्चय ही मैं ऐसा उपाय करूगा कि तुम्हारे शरीर को कहीं से भी किसी प्रकार की आबाधा-ईषत् पीड़ा तथा प्रवाधा - विशेष बाधा न होने पाएगी / इस प्रकार श्यामा देवी को इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनोहर वचनों से आश्वासन देता है और आश्वासन देकर वहाँ से निकल जाता है। निकलकर कौटुम्बिक-अनुचर पुरुषों को बुलाता है और उनसे कहता है-तुम लोग जाओ और जाकर सुप्रतिष्ठित नगर से बाहर पश्चिम दिशा के विभाग में एक बड़ी कूटाकारशाला बनाओ जो सैंकड़ों स्तम्भों से युक्त हो, प्रासादीय, अभिरूप, प्रतिरूप तथा दर्शनीय हो- अर्थात् देखने में अत्यन्त सुन्दर हो / वे कौटम्बिक पुरुष दोनों हाथ जोड़ कर सिर पर दसों नख वाली अञ्जलि रख कर इस राजाज्ञा को शिरोधार्य करते हुए चले जाते हैं। जाकर सुप्रतिष्ठित नगर के बाहर पश्चिम दिक विभाग में एक महती व अनेक स्तम्भों वाली प्रासादिक, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप अर्थात् अत्यन्त मनोहर कुटाकारशाला तैयार करवाते हैं तैयार करवा कर महाराज सिंहसेन की प्राज्ञा प्रत्यर्पण करते हैं अर्थात् कूटाकार शाला यथायोग्य रूप से तैयार हो गई, ऐसा निवेदन करते हैं / १२-तए णं से सोहसेणे राया प्रनया कयाइ एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणाई पंचमाइसयाई आमंतेइ / तए णं तासि एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगुणाई पंचमाइसयाई सोहसेणेणं रन्ना आमंतियाइं समाणाई सवालंकार विभूसियाई जहाविभवेणं जेणेव सुपइ8 नयरे, जेणेव सोहसेणे राया, तेणेव उवागच्छन्ति / तए णं से सीहसेणे राया एगूणगाणं पंचदेवीसयाणं एगूणगाणं पंचमाइसयाणं कूडागारसालं आवासं दलया। १२---तदनन्तर राजा सिंहसेन किसी समय एक कम पांच सौ देवियों (रानियों) की एक कम पांच सौ माताओं को आमन्त्रित करता है / सिंहसेन राजा का आमंत्रण पाकर वे एक कम पांच सौ देवियों की एक कम पांच सौ माताएं सर्वप्रकार से वस्त्रों एवं प्राभूषणों से सुसज्जित हो अपनेअपने वैभव के अनुसार सुप्रतिष्ठित नगर में राजा सिंहसेन जहाँ थे, वहाँ आजाती हैं / सिंहसेन राजा भी उन एक कम पांच सौ देवियों की एक कम पांच सौ माताओं को निवास के लिये कुटाकारशाला में स्थान दे देता है। १३–तए णं से सीहसेणे राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं बयासी-"गच्छह णं तुब्भे देवाणु प्पिया! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवणेह, सुबहु पुफ्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं च कडागारसालं साहरह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org