________________ 18] [विपाकसूत्र---प्रथम श्रुतस्कन्ध पांच सौ-पांच सौ वस्तुओं का प्रीतिदान-दहेज दिया। तदनन्तर राजकुमार सिंहसेन श्यामाप्रमुख उन पांच सौ राजकन्याओं के साथ प्रासादों में रमण करता हुआ सानन्द समय व्यतीत करने लगा। -तए णं से महासेणे राया अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते / नीहरणं / राया जाए। ८--तत्पश्चात् किसी समय राजा महासेन कालधर्म को प्राप्त हुए। (आक्रन्दन, रुदन, विलाप करते हुए) राजकुमार सिंहसेन ने नि:सरण (शवयात्रा निकाली) तत्पश्चात् राजसिंहासन पर आरूढ़ होकर राजा बन गया। ६-तए णं से सोहसेणे राया सामाए देवीए मच्छिए गिद्ध गढिए अज्झोववणे अवसेसानो देवीओ नो पाढाइ, नो परिजाणाइ / प्रणाढायमाणे अपरिजाणमाणे विहरई। तए णं तासि एगणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगणाई पञ्चमाईसयाई इमोसे कहाए लढाई समाणाई ‘एवं खलु सोहसेणे राया सामाएदेवीए मच्छिए गिद्ध गढिए अज्झोववण्णे अम्हं धूयाओ नो प्राढाइ, नो परिजाणाइ, प्रणाढायमाणे, अपरिजाणमाणे विहरइ / तं सेयं खलु अम्हं सामं देवि अग्गिप्पओगेण वा विसप्पयोगेण वा, सत्थप्पभोगेण वा जीवियाग्रो ववरोवित्तए, एवं संपेहेंति, संपेहित्ता सामाए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणीग्रो विहरान्ति / R-तदनन्तर महाराजा सिंहसेन श्यामादेवी में मूच्छित, गृद्ध, ग्रथित व अध्युपपन्न होकर अन्य देवियों का न पादर करता है और न उनका ध्यान ही रखता है। इसके विपरीत उनका अनादर व विस्मरण करके सानंद समय यापन कर रहा है। तत्पश्चात् उन एक कम पांच सौ देवियों-रानियों की एक कम पांच सौ माताओं को जब इस वृत्तान्त का पता लगा कि-'राजा, सिंहसेन श्यामादेवी में मूच्छित, गद्ध, ग्रथित व अध्युपपन्न होकर हमारी कन्याओं का न तो आदर करता और न ध्यान ही रखता है, अपितु उनका अनादर व विस्मरण करता है; तब उन्होंने मिलकर निश्चय किया कि हमारे लिये यही उचित है कि हम श्यामादेवी को अग्नि के प्रयोग से, विष के प्रयोग से अथवा शस्त्र के प्रयोग से जीवन रहित कर ) डाल / इस तरह विचार करतो हैं और विचार करने के अनंतर अन्तर (जब राजा का आगमन न हो) छिद्र (राजा के परिवार का कोई व्यक्ति न हो) को प्रतीक्षा करती हुई समय बिताने लगीं। १०-तए णं सा सामादेवी इमोसे कहाए लट्ठा समाणी एवं वयासी-'एवं खलु, सामी ! एगणगाणं पंचहं सवत्तीसयाणं एगणगाई पंचमाइसयाई इमीसे कहाए लद्धदाई समाणाई अन्नमन्नं एवं वयासी-'एवं खलु, सीहसेणे-जाव पडिजागरमाणीम्रो विहरन्ति / तं न नज्जइ णं मम केणइ कुमारेण मारिस्संति, त्तिक१ .भीया तत्था तसिया उचिगा संजायभया जाव जेणेव कोवघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रोहयमणसंकप्पा जाव झियाइ / १०-इधर श्यामादेवी को भी इस षड्यन्त्र का पता लग गया। जब उसे यह वृत्तान्त विदित हुआ तब वह इस प्रकार विचार करने लगी-मेरी एक कम पांच सौ सपत्नियों (सोतों) की एक कम पांच सौ माताएं-'महाराजा सिंहसेन श्यामा में अत्यन्त आसक्त होकर हमारी पुत्रियों मार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org