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________________ अष्टम अध्ययन : शौरिकदत्त ] [ 95 गोयमा ! सत्तरिवासाइं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए / संसारो तहेब, जाव पुढवीए / तो हस्थिणाउरे नयरे मच्छत्ताए उववज्जिहिइ / से गं तो मच्छिएहि जीवियानो ववरोविए तस्थेव सेटिकुलंसि उववज्जिहिइ, बोही, सोहम्मे कप्पे, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ / निक्खेवो। १५--गौतम स्वामी ने प्रश्न किया-अहो भगवन् ! शौरिकदत्त मत्स्यबन्ध-मच्छीमार यहाँ से कालमास में काल करके कहाँ जायगा? कहाँ उत्पन्न होगा? भगवान ने उत्तर दिया-हे गौतम ! 70 वर्ष की परम आयु को भोगकर कालमास में काल करके रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में उत्पन्न होगा। उसका अवशिष्ट संसार-भ्रमण पूर्ववत् ही समझ लेना चाहिये यावत पृथ्वीकाय आदि में लाखों बार उत्पन्न होगा। वहाँ से निकलकर हस्तिनापुर में मत्स्य होगा। वहाँ मच्छीमारों के द्वारा वध को प्राप्त होकर वहीं हस्तिनापुर में एक श्रेष्ठिकुल में जन्म लेगा। वहाँ सम्यक्त्व की उसे प्राप्ति होगी / वहाँ से मरकर सौधर्म देवलोक में देव होगा। वहाँ से चय कर महाविदेह क्षेत्र में जन्मेगा, चारित्र ग्रहण कर उसके सम्यक् आराधन से सिद्ध पद को प्राप्त करेगा। निक्षेप-उपसंहार पूर्ववत् समझ लेना चाहिये। / / अष्टम अध्ययन समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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