________________ सप्तम अध्ययन उम्बरदत्त प्रस्तावना १-.-'जह णं भंते!' उक्खेवो सत्तमस्स / १-अहो भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने दुःखविपाक के छठे अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो भगवान् ने सातवें अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? इस प्रकार सप्तम अध्ययन के उत्क्षेप की भावना पूर्ववत् जान लेनी चाहिये / २-एवं खलु, जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे नयरे / वणखंडे नाम उज्जाणे / उंबरदत्ते जक्खे / तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सिद्धत्थे राया। तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सागरबत्त सत्यवाहे होत्था, अड्ड० / गंगदत्ता भारिया। तस्स सागरदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ताए भारियाए अत्तए उम्बरदत्तनामं दारए होत्था - अहीणपडिपुग्णपंचिदियसरीरे। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में पाटलिखंड नाम का एक नगर था। वहाँ वनखण्ड नाम का उद्यान था। उस उद्यान में उम्बरदत्त नामक यक्ष का यक्षायतन था। उस नगर में सिद्धार्थ नामक राजा राज्य करता था। पाटलिखण्ड नगर में सागरदत्त नामक एक धनाढ्य सार्थवाह रहता था। उसकी गङ्गदत्ता नाम की भार्या थी। उस सागरदत्त का पुत्र व गङ्गदत्ता भार्या का पात्मज उम्बरदत्त नाम का अन्यून व परिपूर्ण पञ्चेन्द्रियों से युक्त सुन्दर शरीर वाला एक पुत्र था। ३-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवप्रो समोसरणं, जाव परिसा पडिगया। ३-उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर वहां पधारे, यावत् धर्मोपदेश सुनकर राजा तथा परिषद् वापिस चले गये / उम्बरदत्त का वर्तमान भव 4 तेणं कालेणं तेणं समणेणं भगवं गोयमें, तहेव जेणेव पाडलिसंडे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवाच्छित्ता पालिसंडं नयरं पुरथिमिल्लेणं दुवारेणं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता तत्थ गं पासइ एगं पुरिसं कच्छुल्लं को ढियं दोउयरियं, भगंदरियं अरिसिल्लं फासिल्लं सासिल्लं सोगिलं सुयमूह सूयहत्थं सडियपायंगुलियं सडियकण्णनासियं रसियाए य पूइएण य थिविथिवियवणमुहकिमिउत्तयंत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org