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________________ षष्ठ अध्ययन] [73 ७-दुर्योधन नामक उस चारकपाल के निम्न चारकभाण्ड-कारागार सम्बन्धी साधन-- उपकरण थे / अनेक प्रकार को लोहमय कुण्डियाँ थी, जिनमें से कई एक ताम्र से पूर्ण थी, कई एक अपुरांगा से परिपूर्ण थो, कई एक सोसे से भरी थो तो कितनोक चूर्णमिश्रित जल (जिस जल का स्पर्श होते ही जलन उत्पन्न हो जाय) से भरी हुई थी और कितनीक क्षारयुक्त तेल से भरी थी जो कि अग्नि पर रक्खी रहती थी। दुर्योधन नामक उस चारकपाल के पास उष्ट्रिकाएँ--उष्ट्रों के पृष्ठ भाग के समान बड़े-बड़े बर्तन (मटके) थे-उनमें से कई एक अश्वमूत्र से भरे हुए थे, कितनेक हाथी के मूत्र से भरे हुए थे, कितने उष्ट्रमूत्र से, कितनेक गोमूत्र से, कितनेक महिषमूत्र से, कितनेक बकरे के मूत्र से तो कितनेक भेड़ों के मूत्र से भरे हुए थे। उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेक हस्तान्दुक (हाथ में बाँधने का काण्ठ-निर्मित बन्धन विशेष) पादान्दुक (पैर में बांधने का बन्धनविशेष) हडि--काठ की बेड़ी, निगड-लोहे की बेड़ी. और शृखला-लोहे की जजीर के पुज (शिखरयुक्त राशि) तथा निकर (शिखर रहित ढेर) लगाए हुए रक्खे थे। तथा उस दुर्योधन चारकपाल के पास वेणुलताओं--वांस के चाबुकों, बेंत के चाबुकों, चिंचाइमली के चाबुकों, कोमल चर्म के चाबुकों, सामान्य चर्मयुक्त चाबुकों, वल्कलरश्मियों- वृक्षों की त्वच से निमित्त चाबुकों के पुज व निकर रक्खे रहते थे। उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेक शिलाओं, लकड़ियों, मुद्गरों और कनंगरों-जल में चलने वाले जहाज आदि को स्थिर करने वाले यन्त्रविशेष-के पुञ्ज व निकर रखे रहते थे। उस दुर्योधन चरकपाल के पास चमड़े की रस्सियों, सामान्य रस्सियों, बल्कल रज्जुओं, छाल से निमित्त रस्सियों, केशरज्जुनों (ऊनी रस्सियों) और सूत्र रज्जुओं (सूती रस्सियों) के पुञ्ज व निकर रक्खे रहते थे। उस दुर्योधन चारकपाल के पास असिपत्र (कृपाण) करपत्र (आरा) क्षुरपत्र (उस्तरा) और कदम्बचीरपत्र (शस्त्र-विशेष) के भी पुञ्ज व निकर रक्खे रहते थे। उस दुर्योधन चारकपाल के पास लोहे की कीलों, बांस की सलाइयों, चमड़े के पट्टों व अल्लपट्ट-विच्छू की पूछ के आकार जैसे शस्त्र-विशेष के पुज व निकर रक्खे हुए थे। उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेक सुइयों, दम्भनों-अग्नि में तपाकर जिनसे शरीर में दाग दिया जाता है, ऐसी सलाइयों तथा लघु मुद्गरों के पुज व निकर रखे हुए थे। उस दुर्योधन के पास अनेक प्रकार के शस्त्र, पिप्पल (छोटे छुरे) कुठार-कुल्हाड़ों, नखच्छेदकनेहरनों एवं डाभ के अग्रभाग से तीक्ष्ण हथियारों के पुञ्ज व निकर रक्खे हुए थे। -तए णं से दुज्जोहणे चारगपालए सोहरहस्स रनो बहवे चोरे य पारदारिए य गंठिभेए य रायावयारी य अणहारए य बालघायए य विस्संभघायए य जूयगरे य खंडपट्टे य पुरिसेहि गिण्हावेइ, गिहावित्ता उत्ताणए पाडेइ, पाडेता लोहदण्डेणं मुहं विहाडेइ, विहाडित्ता अप्पेगइए तत्ततंबं पज्जेइ, अप्पेगइए त उयं पज्जेइ, अप्पेगइए सोसगं पज्जेइ, अप्पेगइए कलकलं पज्जेइ, अप्पेगइए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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