________________ चतुर्थ अध्ययन : शकट [ 63 इसके उत्तर में महाराज महचन्द्र सुषेण मन्त्री से इस प्रकार बोले-'देवानुप्रिय ! तुम ही इसको अपनी इच्छानुसार दण्ड दे सकते हो।' तत्पश्चात् महाराज महचन्द्र से प्राज्ञा प्राप्त कर सुषेण अमात्य ने शकट कुमार और सुदर्शना गणिका को पूर्वोक्त विधि से (जिसे हे गौतम ! तुमने देखा है) बध करने की आज्ञा राजपुरुषों को प्रदान की। शकट का भविष्य १३-सगडे णं भंते ! दारए कालगए कहि गच्छिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! सगडे णं दारए सत्तावन्न वासाइं परमाउयं पालइत्ता अज्जेब तिभागावसेसे दिवसे एग महं अयोमयं तत्तं समजोइभूयं इत्थिपडिम अवयासाविए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ। से गं तो अणंतरं उच्चट्टित्ता रायगिहे नयरे मातंगकुलंसि जुगलत्ताए पच्चायाहिइ / तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एथारूवं गोण्णं नामधेज्जं करिस्संत्ति- 'तं होउ णं दारए सगडे नामेणं, होउ णं दारिया सुदरिसणा नामेणं / ' १३-शकट की दुर्दशा का कारण भगवान से सुनकर गौतम स्वामी ने प्रश्न किया--हे प्रभो ! शकट कुमार बालक यहाँ से काल करके कहाँ जाएगा और कहाँ पर उत्पन्न होगा? भगवान् बोले-हे गौतम ! शकट दारक को 57 वर्ष की परम आयु को भोगकर आज ही तीसरा भाग शेष रहे दिन में एक महालोहमय तपी हुई अग्नि के समान देदीप्यमान स्त्रीप्रतिमा से प्रालिंगित कराया जायगा। तब वह मृत्यु-समय में मरकर रत्नप्रभा नाम की प्रथम नरक भूमि में नारक रूप से उत्पन्न होगा। वहाँ से निकलकर राजगृह नगर में मातङ्ग--चाण्डाल के कुल में युगल रूप से उत्पन्न होगा। युगल (वे दो बच्चे जो एक ही गर्भ से साथ-साथ उत्पन्न हुए हों) के माता-पिता बारहवें दिन उनमें से बालक का नाम 'शकटकुमार' और कन्या का नाम 'सुदर्शना' रक्खेंगे। १४---तए णं से सगडे दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमेते जोव्वणगमणुपत्ते भविस्सइ / तए णं सा सुदरिसणा वि दारिया उम्मक्कबालभावा जोधणगमणुप्पत्ता स्वेण य जोवणेण य लावणेण य उक्किट्ठा उक्किटुसरीरा यावि भविस्सइ / तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए रूवेण य जोवणेण 5 लावण्णेण य मुच्छिए सुदरिसणाए सद्धि उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिस्सइ। तए णं से सगडे दारए अन्नया सयमेव कडग्गाहित्तं उबसंपज्जित्ताणं विहरिस्सइ / तए णं से सगडे दारए कूडग्गाहे भविस्सइ अहम्मिए जाव' दुप्पडियाणन्दे / एयकम्मे-४ सुबहुं पाकम्मं समज्जिणित्ता कालमासे काल किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयत्ताए उवदन्जिहिइ / संसारो तहेव जाव पुढवीए। 1. प्र. अ. सूत्र 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org