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________________ 48] [ विपाकसूत्र--प्रथम श्र तस्कन्ध तए णं से प्रभग्गसेणे कुमारे पंचधाईपरिग्गहिए जाव' परिवडइ / तए णं से अभग्गसेणे कुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था। अट्ठदारियायो, जाव अट्टनो दाओ / उप्पि पासाए भुंजमाणे विहरइ। १६–तदन्तर उस चोर सेनापति की पत्नी स्कन्दश्री ने नौमास के परिपूर्ण होने पर पुत्र को जन्म दिया। विजय चोरसेनापति ने भी दश दिन पर्यन्त महान् वैभव के साथ स्थिति-पतितकुलक्रमागत उत्सव मनाया। उसके बाद बालक के जन्म के ग्यारहवें दिन विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार कराया। मित्र, ज्ञाति, स्वजनों आदि को आमन्त्रित किया, जिमाया और उनके सामने इस प्रकार कहा, 'जिस समय यह बालक गर्भ में पाया था, उस समय इसकी माता को एक दाहद उत्पन्न हुअा था (उस दोहद को भग्न नहीं होने दिया) अत: माता को जो दोहद उत्पन्न हुआ वह अभग्न रहा तथा निर्विघ्न सम्पन्न हना। इसलिये इस बालक का 'अभग्नसेन' यह नामकरण किया जाता है।' तदनन्तर वह अभग्नसेन बालक क्षीरधात्री आदि पांच धायमाताओं के द्वारा संभाला जाता हुमा वृद्धि को प्राप्त होने लगा। अनुक्रम से कुमार अभग्नसेन ने बाल्यावस्था को पार करके युवावस्था में प्रवेश किया। आठ कन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ / विवाह में उसके माता-पिता ने पाठ-पाठ प्रकार की वस्तुएँ प्रीतिदान-दहेज में दी और वह ऊँचे प्रासादों में रहकर मनुष्य सम्बन्धी भोगों का उपभोग करने लगा। १७-तए णं से विजए चोरसेणावई अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते / तए णं से प्रभग्गसेणे कुमारे पंचहिं चोरसएहि सद्धि संपरिवुडे रोयमाणे, कंदमाणे, विलवमाणे विजयस्स चोरसेणावइस्स महया इड्डीसक्कारसमुदएणं नोहरणं करेइ, करेत्ता, बहूई लोइयाई मच्चकिच्चाई करेइ, करेत्ता केणइ कालेणं प्रप्पसोए जाए यावि होत्था। १७–तत्पश्चात् किसी समय वह विजय चोरसेनापति कालधर्म (मरण) को प्राप्त हो गया। उसकी मृत्यु पर कुमार अभग्नसेन ने पांच सौ चोरों के साथ रोते हुए, आक्रन्दन करते हुए और विलाप करते हुए अत्यन्त ठाठ के साथ एवं सत्कार सम्मान के साथ विजय चोरसेनापति का नीहरणदाहसंस्कार किया। बहुत से लौकिक मृतककृत्य अर्थात् दाहसंस्कार से लेकर पिता के निमित्त किए जाने वाले दान भोजनादि कार्य किए / थोड़े समय के पश्चात् अभग्नसेन शोक रहित हो गया। १८-तए णं ते चोरपंचसयाइं अन्नया कयाइ अभग्गसेणं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया महया इड्डीसक्कारेणं चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचंति / तए णं से प्रभग्गसेणे कुमारे चोरसेणावई जाए अहम्मिए जाव कप्पायं गिण्हइ / १८-तदनन्तर उन पांच सौ चोरों ने बड़े महोत्सव के साथ अभग्नसेन को शालाटवी नामक चोरपल्ली में चोर सेनापति के पद पर प्रस्थापित किया। सेनापति के पद पर नियुक्त हुया वह 1. द्वि. अ., सूत्र 16 2. तृ.अ., सूत्र-४-५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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