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________________ 44] / विपाकसूत्र-प्रथम श्रु तस्कन्ध टुकड़ों को खिलाते हैं और रुधिर का पान कराते हैं / तदनन्तर द्वितीय चत्वर पर उसकी आठ लघुमाताओं को (चाचियों को) उसके समक्ष ताड़ित करते हैं और मांस खिलाते तथा रुधिरपान कराते हैं / इसी तरह तीसरे चत्वर पर पाठ महापिताओं (पिता के ज्येष्ठ भ्राताओं-ताउओं) को, चौथे चत्वर पर आठ महामाताओं (पिता के ज्येष्ठ भ्राताओं की धर्मपत्नियों-ताइयों) को, पांचवे पर पुत्रों को, छठे पर पुत्रवधुओं को, सातवें पर जामाताओं को, आठवें पर लड़कियों को, नवमें पर नप्तानों (पौत्रों व दोहित्रों) को, दसवें पर लड़के और लड़कियों की लड़कियों (पौत्रियों व दौहित्रियों) को, ग्यारहवें पर नप्तृकापतियों (पौत्रियों व दौहित्रियों के पत्तियों) को, तेरहवें पर पिता की बहिनों के पतियों (फफाओं) को, चौदहवें पर पिता की बहिनों (ग्राओं) को, पन्द्रहवें पर माता की बहिनों के पतियों (मौसानों) को, सोलहवें पर माता की बहिनों को (मौसियों को), सत्रहवें पर मामा की स्त्रियों (मामियों) को, अठारहवें पर शेष मित्र, ज्ञाति, स्वजन सम्बन्धी और परिजनों को उस पुरुष के आगे मारते हैं तथा चाबुक के प्रहारों से ताड़ित करते हुए वे राजपुरुष करुणाजनक उस पुरुष को उसके शरीर से निकाले हुए मांस के टुकड़े खिलाते और रुधिर का पान कराते हैं। अभग्नसेन का पूर्वभव &-तए णं से भगवं गोयमे तं पुरिसं पासइ पासित्ता इमे एयारूवे जाव समुप्पन्न जाव तहेव निग्गए एवं वयासी—‘एवं खलु महं गं भंते ! तं चेव जाव से णं भन्ते ! पुरिसे पुव्वभवे के पासी' जाव विहरइ।' ६-तदनन्तर भगवान् गौतम के हृदय में उस पुरुष को देखकर यह सङ्कल्प उत्पन्न हुआ यावत पूर्ववत वे नगर से बाहर निकले तथा भगवान के पास आकर निवेदन करने लगे-भगवन ! मैं आपको आज्ञानुसार नगर में गया, वहाँ मैंने एक पुरुष को देखा यावत् भगवन् ! वह पुरुष पूर्वभव में कौन था ? जो इस तरह अपने कर्मों का फल पा रहा है ? अभग्नसेन का निन्नयभव १०–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे पुरिमताल नाम नयरे होत्था, रिद्धस्थमियसमिद्ध'। तत्थ णं पुरिमताले नयरे उदिए नाम राया होत्या, महया० 2 / तत्थ णं पुरिमताले निन्नए नामं अंडयवाणिए होत्था। अड्ढे जाव' अपरिभूए, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणन्दे / तस्स गं निन्नयस्स बहवे पुरिसा दिन्नभइभत्तवेपणा कल्लाकल्लिं कुद्दालियानो य पत्थियपिडए य गिण्हंति, गिहित्ता पुरिमतालस्स नगरस्स परिपेरन्तेसु बहवे काइअंडए य घूइअंडए य पारेवइअंडए य टिट्टिभिअंडए य बगि-मयूरो-कुक्कुडिअंडए य अन्नेसि च बहूणं जलयर-थलयरखहयरमाईणं अंडाइं गेहंति, मेण्हेत्ता पत्थियपिडगाई भरेंति, भरेत्ता जेणेव निन्नयए अंडवाणियए तेणामेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता निन्नयस्स अंडवाणियस्स उवणेति / १०-इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! उस काल तथा उस समय इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप 1. 2. औप. सूत्र-१ औप० सूत्र-१४ 3. औप. सूत्र 141 4. तृतीय अध्ययन-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003479
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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