________________ तृतीय अध्ययन : अभग्नसेन ] णं विजयचोरसेणावइस्स पुत्ते खंदसिरोए भारियाए अत्तए अभग्गसणे नामं दारए होत्था, अहोणपडिपुण्णपंचिदियसरीरे विन्नायपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते / ६-उस विजय नामक चोरसेनापति की स्कन्दश्री नाम की परिपूर्ण पांच इन्द्रियों से युक्त सर्वांगसुन्दरी पत्नी थी / उस विजय चोरसेनापति का पुत्र एवं स्कन्दश्री का पात्मज अभग्नसेन नाम का एक बालक था, जो अन्यून--- सम्पूर्ण पांच इन्द्रियों वाला-संगठित शरीर वाला तथा विशेष ज्ञान रखने वाला और बुद्धि की परिपक्वता से युक्त यौवनावस्था को प्राप्त किये हुए था। 7 तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुरिमतालनयरे समोसढे। परिसा निग्गया। राया निग्गयो। धम्मो कहियो / परिसा राया य पडिगयो। ७--उस काल तथा उस समय में पुरिमताल नगर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे / परिषद्-जनसमूह धर्मदेशना श्रवण करने गये। राजा भी गया। भगवान् ने धर्मोपदेश दिया। धर्मोपदेश सनकर राजा तथा जनता वापिस अपने स्थान को लौट आये। ८-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्त भगवनो महावीरस्स जे? अन्तेवासी गोयमे जाब' रायमगं समोगाढे / तत्थ णं बहवे हत्थी पासइ, बहवे प्रासे, पुरिसे सन्नद्धबद्धकवए। तेसि णं पुरिसाणं मझगयं एगं पुरिसं पासइ अवप्रोडयबंधणं जाव' उम्घोसिज्जमाणं / तए णं तं पुरिसं रायपुरिसा पढमंसि चच्चरंसि निसीयावेन्ति, निसीयावेत्ता अट्ठ चल्लपिउए अग्गो घाएन्ति, घाएत्ता कसपहारेहि तालेमाणा तालेमाणा कलणं कागणिमंसाइं खाति, रुहिरपाणियं च पाएन्ति / तयाणन्तरं च दोच्चंसि चच्चरंसि अट्ट चुल्लमाउयानो अग्गो घाएन्ति, घाएत्ता कसपहाहि तालेमाणा तालेमाणा कलुणं कागणिमंसाई खावेति, रुहिरपाणियं च पाएन्ति / एवं तच्चे चच्चरे अट्टमहापिउए, चउत्थे अट्ट महामाउयानो, पंचमे पुत्ते, छ8 सुण्हायो, सत्तमे जामाउया, अट्ठमे धूयानो, नवमे नत्तुया, दसमे नत्तईयो, एक्कारसमे नत्तयाबई, बारसमे नत्तुइणीप्रो, तेरसमे पिउस्सियपइया, चोइसमे पियुस्सियानो, पन्नरसमे माउस्सियापइया, सोलसमे माउस्सियाणो, सत्तरसमे मामियानो, अट्ठारसमे अवसेसं मित्त-नाइ-नियगसयण-संबंधि-परियणं अग्गयो घाएंति, घाएत्ता कसप्पहारोहिं तालेमाणा तालेमाणा कलुणं कागणिमंसाई खावेंति, रुहिरपाणियं च पाएन्ति ! ८-उस काल एवं उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के प्रधान शिष्य श्री गौतम स्वामी राजमार्ग में पधारे / वहाँ उन्होंने बहुत से हाथियों, घोड़ों तथा सैनिकों की तरह शस्त्रों से सुसज्जित और कवच पहिने हुए अनेक पुरुषों को देखा / उन सब पुरुषों के बीच अवकोटक बन्धन' से युक्त उद्घोषित एक पुरुष को भी देखा; जैसा दूसरे अध्ययन में कहा गया है / तदनन्तर राजपुरुष उस पुरुष को चत्वर (चार मार्गों से अधिक मार्ग जहाँ एकत्रित हों) पर बैठाकर उसके प्रागे पाठ लघुपिताओं (चाचाओं) को मारते हैं / तथा कशादि प्रहारों से ताड़ित करते हुए दयनीय स्थिति को प्राप्त हुए उस पुरुष को उसके ही शरीर में से काटे गये मांस के छोटे-छोटे 2. द्वि. अ. सूत्र-६ 1. द्वि. अ., सूत्र-६ 3. द्वि. अ., सूत्र-७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org