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________________ 60] [प्रश्नण्याकरणसूत्र : शु. 1, अं. 2 ४७–(वामलोकवादी नास्तिकों के अतिरिक्त) कोई-कोई असद्भाववादी-मिथ्यावादी मूढ जन दूसरा कुदर्शन-मिथ्यामत इस प्रकार कहते हैं यह लोक अंडे से उद्भूत-प्रकट हुआ है / इस लोक का निर्माण स्वयं स्वयंभू ने किया है। इस प्रकार वे मिथ्या कथन करते हैं। विवेचन-उल्लिखित मूल पाठ में सृष्टि की उत्पत्ति मान कर उसकी उत्पत्ति की विधि किस प्रकार मान्य की गई है, इस सम्बन्ध में अनेकानेक मतों में से दो मतों का उल्लेख किया गया है। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि यह वाद-कथन वास्तविक नहीं है। अज्ञानी जन इस प्रकार की प्ररूपणा करते हैं। किसी-किसी का अभिमत है कि यह समग्र जगत् अंडे से उत्पन्न या उद्भूत हुआ है और स्वयंभू ने इसका निर्माण किया है। __ अंडसृष्टि के मुख्य दो प्रकार हैं-एक प्रकार छान्दोग्योपनिषद् में बतलाया गया है और दूसरा प्रकार मनुस्मृति में दिखलाया गया है। छान्दोग्योपनिषद् के अनुसार सृष्टि से पहले प्रलयकाल में यह जगत् असत् अर्थात् अव्यक्त था। फिर वह सत् अर्थात् नाम रूप कार्य की ओर अभिमुख हुआ। तत्पश्चात् यह अंकुरित बीज के समान कुछ-कुछ स्थूल बना। आगे चलकर वह जगत् अंडे के रूप में बन गया / एक वर्ष तक वह अण्डे के रूप में बना रहा / एक वर्ष बाद अंडा फूटा / अंडे के कपालों (टुकड़ों) में से एक चांदी का और दूसरा सोने का बना / जो टुकड़ा चांदी का था उससे यह पृथ्वी बनी और सोने के टुकड़े से ऊर्ध्वलोकस्वर्ग बना / गर्भ का जो जरायु (वेष्टन) था उससे पर्वत बने और जो सूक्ष्म वेष्टन था वह मेघ और तुषार रूप में परिणत हो गया। उसकी धमनियाँ नदियाँ बन गईं / जो मूत्राशय का जल था वह समुद्र बन गया। अंडे के अन्दर से जो गर्भ रूप में उत्पन्न हुअा वह आदित्य बना।' यह स्वतन्त्र अंडे से बनी सृष्टि है। दूसरे प्रकार की अंडसृष्टि का वर्णन मनुस्मृति में पाया जाता है वह इस प्रकार है 1. छान्दोग्योपनिषद् 3, 19 2. प्रासीदिदं तमोभूतमप्रज्ञातमलक्षणम् / अप्रतय॑मविज्ञेयं प्रसूप्तमिव सर्वतः / / ततः स्वयंभूभंगवानव्यक्तो व्यञ्जयन्निदम् / महाभूतादिवृत्तीजाः प्रादुरासोत्तमोनुदः / योऽसावतीन्द्रियग्राह्यः, सूक्ष्मोऽव्यक्तसनातनः / सर्वभूतमयोऽचिन्त्यः, स एव स्वयमुद्बभौ / / सोऽभिध्याय शरीरात् स्वात्सिसृक्षुर्विविधा प्रजाः / अप एव ससर्जादौ, तासु बीजमपासृजत् / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003478
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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