________________ समर्पण जिनके जीवन का क्षण-क्षण, कण-करा परम उज्ज्वल, निर्मल संयमाराधन से अनुप्राणित था, जिनका व्यक्तित्व सत्य, शील तथा आत्मशौर्य की दिव्य ज्योति से जाज्वल्यमान था, ध्यान तथा स्वाध्याय के सुधा-रस से जो सर्वथा आख्यायित थे, धर्मसंघ के समुनयन एवं समुत्कर्ष में जो सहज आत्मतुष्टि की अनुभूति करते थे, "मनसि वसि कार्य पुरयपीयूषपूर्णाः" के जो सजीव निदर्शन थे, मेरे संयम-जीवितव्य, विद्या-जीवितव्य तथा साहित्यिक सर्जन में जिनकी प्रेरणा, सहयोग, प्रोत्साहन मेरे लिए अमर वरदान थे, आगम-वाणी की भावात्मक परिव्याप्ति जिनकी रग-रग में उल्लसित थी, मेरे सर्वतोमुखी अभ्युदय, धर्मशासन के अभिवर्धन तथा अध्यात्म-पूभावना में हो जिन्होंने जीवन की सारवत्ता देखो, उन परम श्रद्धास्पद, महातपा, बाल ब्रह्मचारी, संयमसर्य, मेरे समादरणीय गुरूपम, ज्येष्ठ गुरु-बन्धु, स्व. उप प्रवर्तक परम पूज्य प्रातःस्मरणीय मुनि श्री व्रजलालजी स्वामी म. सा. की पुण्य स्मृति में, श्रद्धा, भक्ति, आदर एवं विनयपूर्वक समर्पित --मधुकर मुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org