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________________ हिसक जातियाँ [25 वाले, क्रूरकर्मा वागुरिक-जाल में मृग आदि को फंसाने के लिए घूमने वाले, जो मृगादि को मारने के लिए चीता, बन्धनप्रयोग-फंसाने बांधने के लिए उपाय, मछलियां पकड़ने के लिए तप्र-छोटी नौका, गल-मछलियां पकड़ने के लिए कांटे पर पाटा या मांस, जाल, वीरल्लक-बाज पक्षी, लोहे का जाल, दर्भ-डाभ या दर्भनिर्मित रस्सी, कूटपाश, बकरी-चीता आदि को पकड़ने के लिए पिंजरे आदि में रक्खी हुई अथवा किसी स्थान पर बाँधी हुई बकरी अथवा बकरा, इन सब साधनों को हाथ में लेकर फिरने वाले - इन साधनों का प्रयोग करने वाले, हरिकेश-चाण्डाल, चिड़ीमार, बाज पक्षी तथा जाल को रखने वाले, वनचर-भील आदि वनवासी, मधु-मक्खियों का घात करने वाले, पोतघातक-पक्षियों के बच्चों का घात करने वाले, मृगों को आकर्षित करने के लिए मृगियों का पालन करने वाले, सरोवर, ह्रद, वापी, तालाब, पल्लव-क्षुद्र जलाशय को मत्स्य, शंख आदि प्राप्त करने के लिये खाली करने वाले पानी निकाल कर, जलागम का मार्ग रोक कर तथा जलाशय को किसी उपाय से सुखाने वाले, विष अथवा गरल-अन्य वस्तु में मिले विष को खिलाने वाले, उगे हुए ऋण - घास एवं खेत को निर्दयतापूर्वक जलाने वाले, ये सब क्रूरकर्मकारी हैं, (जो अनेक प्रकार के प्राणियों का घात करते हैं)। विवेचन-प्रारंभ में, तृतीय गाथा में हिंसा आदि पापों का विवेचन करने के लिए जो क्रम निर्धारित किया गया था, उसके अनुसार पहले हिंसा के फल का कथन किया जाना चाहिए। किन्तु प्रस्तुत में इस क्रम में परिवर्तन कर दिया गया है। इसका कारण अल्पवक्तव्यता है / हिंसकों का कथन करने के पश्चात् विस्तार से हिंसा के फल का निरूपण किया जाएगा। सूत्र का अर्थ सुगम है, अतएव उसके पृथक् विवेचन की आवश्यकता नहीं है / हिंसक जातियाँ २०-इमे य बहवे मिलक्खुजाई, के ते ? सक-जवण-सबर-बब्बर-गाय-मुरुडोद-भडग-तित्तियपक्कणिय-कुलक्ख-गोड-सीहल-पारस-कोचंध-ददिल-बिल्लल-पुलिद-प्ररोस-डोंव-पोक्कण-गंध-हारग-बहलोय-जल्ल-रोम-मास-बउस-मलया-चुचया य चूलिया कोंकणगा-मेत्त' पण्हव-मालव-महुर-प्राभासियअणक्ख-चीण-लासिय-खस-खासिया-नेहर-मरहट्ट-मुट्टिय- आरब-डोबिलग-कुहण-केकय-हूण-रोमग-रुरु - मरुया-चिलायविसयवासो य पावमइणो / २०-(पूर्वोक्त हिंसाकारियों के अतिरिक्त) ये बहुत-सी म्लेच्छ जातियाँ भी हैं, जो हिंसक हैं / वे (जातियाँ) कौन-सी हैं ? शक, यवन, शबर, वब्बर, काय (गाय), मुरुड, उद, भडक, तित्तिक, पक्कणिक, कुलाक्ष, गौड, सिंहल, पारस, क्रौंच, आन्ध्र, द्रविड़, विल्वल, पुलिंद, आरोष, डौंब, पोकण, गान्धार, बहलीक, जल्ल, रोम, मास, वकुश, मलय, चुचुक, चूलिक, कोंकण, मेद, पण्हव, मालव, महुर, आभाषिक, अणक्क, चीन, ल्हासिक, खस, खासिक, नेहर, महाराष्ट्र, मौष्टिक, प्रारब, डोबलिक, कुहण, कैकय, हूण, 1. पूज्य श्री हस्तीमलजी म. सम्पादित तथा बीकानेर वाली प्रति में 'कोंकणगामेत्त' पाठ है और पूज्य श्री घासी लालजी म. तथा श्रीमदज्ञानबिमल सूरि की टीकावली प्रति में—'कोंकणग-कणय-सेय-मेता'--.-पाठ है। यह पाठभेद है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003478
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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