________________ उत्क्षेप [233 6. जीवनिकाय अर्थात् संसारी जीवों के छह समूह-वर्ग हैं—(१) पृथ्वीकाय (2) अप्काय (3) तेजस्काय (4) वायुकाय (5) वनस्पतिकाय और (6) त्रसकाय / लेश्याएं छह हैं--(१) कृष्णलेश्या (2) नीललेश्या (3) कापोतलेश्या (4) पीतलेश्या (5) पद्मलेश्या (6) शुक्ललेश्या / 7. भय सात प्रकार के हैं--(१) इहलोकभय (2) परलोकभय (3) प्रादानभय (4) अकस्मात् भय (5) आजीविकाभय (6) अपयशभय और (7) मृत्युभय / 8. मद आठ हैं-(१) जातिमद (2) कुलमद (3) बलमद (4) रूपमद (5) तपमद (6) लाभमद (7) श्रुतमद (8) ऐश्वर्यमद। 6. ब्रह्मचर्य-गुप्तियाँ नौ हैं--(१) विविक्तशयनासनसेवन (2) स्त्रीकथावर्जन (3) स्त्रीयुक्त आसन का परिहार (4) स्त्री के रूपादि के दर्शन का त्याग (5) स्त्रियों के श्रगारमय, करुण तथा हास्य अादि सम्बन्धी शब्दों के श्रवण का परिवर्जन (6) पूर्वकाल में भोगे हुए भोगों के स्मरण का वर्जन (7) प्रणीत आहार का त्याग (8) प्रभूत- अति आहार का त्याग और (6) शारीरिक विभूषा का त्याग / / 10. श्रमणधर्म दस हैं—(१) क्षान्ति (2) मुक्तिनिर्लोभता (3) आर्जव-निष्कपटतासरलता (4) मार्दव-मृदुता-नम्रता (5) लाघव-उपधि की अल्पता (6) सत्य (7) संयम (8) तप (6) त्याग और (10) ब्रह्मचर्य / 11. श्रमणोपासक की प्रतिमाएं ग्यारह हैं--(१) दर्शनप्रतिमा (2) व्रतप्रतिमा (3) सामायिक प्रतिमा (4) पौषधप्रतिमा (5) कायोत्सर्गप्रतिमा (6) ब्रह्मचर्यप्रतिमा (7) सचित्तत्यागप्रतिमा (8) प्रारम्भत्यागप्रतिमा (8) प्रेष्यप्रयोगत्यागप्रतिमा (10) उद्दिष्टत्यागप्रतिमा और (11) श्रमणभूतप्रतिमा। 12. भिक्षु-प्रतिमाएँ बारह हैं। वे इस प्रकार हैं मासाई सत्तंता पढमा बिय तिय सत्त राइदिणा / अहराइ एगराई भिक्खू पडिमाण बारसगं / / अर्थात् एकमासिकी, द्विमासिकी, त्रिमासिकी से लेकर सप्तमासिकी तक की सात प्रतिमाएँ, सात-सात अहोरात्र की आठवीं, नौवीं और दसमी, एक अहोरात्र की ग्यारहवीं और एक रात्रि की बारहवीं प्रतिमा / विशेष विवरण दशाश्रुतस्कन्धसूत्र से जानना चाहिए / 13. क्रियास्थान तेरह हैं, जो इस प्रकार हैं __ अट्ठाऽणवाहिंसाऽकम्हा दिट्ठी य मोसऽदिन्न य / अज्झप्पमाणमित्ते मायालोभेरिया बहिया / / ___ अर्थात्---(१) अर्थदण्ड (2) अनर्थदण्ड (3) हिंसादण्ड (4) अकस्मात्दण्ड (5) दृष्टिविपर्यासदण्ड (6) मृषावाद (7) अदत्तादानदण्ड (8) अध्यात्मदण्ड (8) मानदण्ड (10) मिश्रद्वेषदण्ड (11) मायादण्ड (12) लोभदण्ड और (13) ऐपिथिकदण्ड / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org