________________ 164 ] [प्रश्नध्याकरणसूत्र : भ. 2, अ. 1 (54) चोक्ष-चोखी, शुद्ध, भली प्रतीत होने वाली। (55) पवित्रा-अत्यन्त पावन-वज्र सरीखे घोर आघात से भी त्राण करने वाली। (56) शुचि-भाव की अपेक्षा शुद्ध-हिंसा आदि मलीन भावों से रहित, निष्कलंक / (57) पूता-पूजा, विशुद्ध या भाव से देवपूजारूप / (58) विमला-स्वयं निर्मल एवं निर्मलता का कारण / (59) प्रभासा-आत्मा को दीप्ति प्रदान करने वाली, प्रकाशमय / (60) निर्मलतरा-अत्यन्त निर्मल अथवा प्रात्मा को अतीव निर्मल बनाने वाली। अहिंसा भगवती के इत्यादि (पूर्वोक्त तथा इसी प्रकार के अन्य) स्वगुणनिष्पन्न अपने गुणों से निष्पन्न हुए नाम हैं। विवेचन प्रस्तुत पाठ में अहिंसा को भगवती कह कर उसकी असाधारण महिमा प्रकट की गई है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि चाहे नर हो, सुर हो अथवा असुर हो, अर्थात् मनुष्य या चारों निकायों के देवों में से कोई भी हो और उपलक्षण से इनसे भिन्न पशु-पक्षी आदि हों, सब के लिए अहिंसा ही शरणभूत है / अथाह सागर में डूबते हुए मनुष्य को जैसे द्वीप मिल जाए तो उसकी रक्षा हो जाती है, उसी प्रकार संसार-सागर में दुःख पा रहे हुए प्राणियों के लिए भगवती अहिंसा त्राणदायिनी है। _ अहिंसा के साठ नामों का साक्षात् उल्लेख करने के पश्चात् शास्त्रकार ने बतलाया है कि इसके इनके अतिरिक्त अन्य नाम भी हैं और वे भी गुणनिष्पन्न ही हैं। मूल पाठ में जिन नामों का उल्लेख किया गया है, उनसे अहिंसा के अत्यन्त व्यापक एवं विराट् स्वरूप की सहज ही कल्पना आ सकती है। जो लोग अहिंसा का अत्यन्त संकीर्ण अर्थ करते हैं, उन्हें अहिंसा के इन साठ नामों से फलित होने वाले अर्थ पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। निर्वाण, निर्वृत्ति, समाधि, तृप्ति, शान्ति, बोधि, धृति, विशुद्धि प्रादि-आदि नाम साधक की अान्तरिक भावनाओं को प्रकट करते हैं, अर्थात् मानव की इस प्रकार की सात्त्विक भावनाएँ भी अहिंसा में गभित हैं / ये भगवती अहिंसा के विराट् स्वरूप की अंग हैं / रक्षा, समिति, दया, अमाघात आदि नाम पर के प्रति चरितार्थ होने वाले साधक के व्यवहार के द्योतक हैं। तात्पर्य यह कि इन नामों से प्रतीत होता है कि दुःखों से पीडित प्राणी को दुःख से बचाना भी अहिंसा है, पर-पीड़ाजनक कार्य न करते हुए यतनाचार-समिति का पालन करना भी अहिंसा का अंग है और विश्व के समग्र जीवों पर दया-करुणा करना भी अहिंसा है / कत्ति, कान्ति, रति, चोक्षा, पवित्रा, शुचि, पूता आदि नाम उसकी पवित्रता के प्रकाशक हैं / नन्दा, भद्रा, कल्याण, मंगल, प्रमोदा आदि नाम प्रकट करते हैं कि अहिंसा की आराधना का फल क्या है ! इसकी आराधना से पाराधक की चित्तवृत्ति किस प्रकार कल्याणमयी, मंगलमयी बन जाती है / इस प्रकार अहिंसा के उल्लिखित नामों से उसके विविध रूपों का, उसकी आराधना से आराधक के जीवन में प्रादुर्भूत होने वाली प्रशस्त वृत्तियों का एवं उसके परिणाम-फल का स्पष्ट चित्र उभर आता है / अतएव जो लोग अहिंसा का अतिसंकीर्ण अर्थ 'जीव के प्राणों का व्यपरोपण न करना' मात्र मानते हैं, उनकी मान्यता की भ्रान्तता स्पष्ट हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org