________________ 152 ] [प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्र. 1, अ. 5 3. रूपकला-वस्त्र, भित्ति, रजत-स्वर्णपट्ट आदि पर रूप (चित्र) बनाना / 4. नाटयकला-नाचने और अभिनय करने का ज्ञान / 5. गीतकला---गायन सम्बन्धी कौशल / 6. वाद्यकला-अनेक प्रकार के वाद्य बजाने की कला। 7. स्वरगत कला-अनेक प्रकार की राग-रागिनियों में स्वर निकालने की कला / 8. पुष्करगत कला–पुष्कर नामक वाद्यविशेष का ज्ञान / 6. समतालकला-समान ताल से बजाने की कला। 10. द्यूतकला-जुआ खेलने की कुशलता। 11. जनवादकला-जनश्रुति एवं किंवदन्तियों को जानना / 12. पौरस्कृत्यकला–पांसे खेलने का ज्ञान / 13. अष्टापदकला--शतरंज, चौसर प्रादि खेलने का ज्ञान / 14. दकमृत्तिकाकला-जल के संयोग से मिट्टी के खिलौने आदि बनाना। 15. अन्नविधिकला--विविध प्रकार का भोजन बनाने का ज्ञान / 16. पानविधिकला-पेय पदार्थ तैयार करने की कुशलता / 17. वस्त्रविधि-वस्त्रों के निर्माण की कला। 18. शयनविधि-शयन सम्बन्धी कला। 16. आर्याविधि--आर्या छन्द बनाने की कला / 20. प्रहेलिका--पहेलियाँ बनाने, बूझने की कला, गूढार्थवाली कविता रचना। 21. मागधिका-स्तुतिपाठ करने वाले चारण-भाटों सम्बन्धी कला / 22. गाथाकला–प्राकृतादि भाषाओं में गाथाएँ रचने का ज्ञान / 23. श्लोककला-संस्कृतादि भाषाओं में श्लोक रचना / 24. गन्धयुक्ति–सुगंधित पदार्थ तैयार करना / 25. मधुसिक्थ-स्त्रियों के पैरों में लगाया जाने वाला महावर बनाना / 26. प्राभरणविधि-आभूषण निर्माण की कला / 27. तरुणीप्रतिकर्म-तरुणी स्त्रियों के अनुरंजन का कौशल / 28. स्त्रीलक्षण-स्त्रियों के शुभाशुभ लक्षणों को जानने का कौशल / 26. पुरुषलक्षण-पुरुषों के शुभाशुभ लक्षणों को जानने का कौशल / 30. ह्यलक्षण-घोड़ों के लक्षण पहचानना / 31. गजलक्षण-हाथी के शुभाशुभ लक्षण जानना। 32. गोणलक्षण-बैलों के शुभाशुभ लक्षण जानना / 33. कुक्कुटलक्षण-मुर्गों के शुभाशुभ लक्षण जानना / 34. मेढलक्षण--मेढों के लक्षणों को पहचानना / 35. चक्रलक्षण—चक्र प्रायुध के लक्षण जानना / 36. छत्रलक्षण- छत्र के शुभाशुभ लक्षण जानना / 37. दण्डलक्षण-दण्ड के लक्षणों का परिज्ञान / 38. असिलक्षण-तलवार, वी आदि के शुभ-अशुभ लक्षणों को जानना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org