________________ 'चोर को दिया जाने वाला बण्ड] उन राजकीय पुरुषों द्वारा जिनको प्राणदण्ड की सजा दी गई है, उन चोरों को पुरवर- नगर में शृगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ और पथ आदि स्थानों में जनसाधारण के सामने-प्रकट रूप में लाया जाता है / तत्पश्चात् बेतों से, डंडों से, लाठियों से, लकड़ियों से, ढेलों से, पत्थरों से, लम्बे लट्ठों से, पणोल्लि- एक विशेष प्रकार की लाठी से, मुक्कों से, लताओं से, लातों से, घुटनों से, कोहनियों से उनके अंग-अंग भंग कर दिए जाते हैं, उनके शरीर को मथ दिया जाता है। विवेचन--प्रस्तुत पाठ में भी चोरों की यातनामों का प्रतिपादन किया गया है / साथ ही यह उल्लेख भी कर दिया गया है कि आखिर मनुष्य चौर्य जैसे पाप कर्म में, जिसके फलस्वरूप ऐसी-ऐसी भयानक एवं घोरतर यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं, क्यों प्रवृत्त होता है ? ___ इस पाप-प्रवृत्ति का प्रथम मूल कारण अपनी इन्द्रियों को वश में न रखना है / जो मनुष्य इन्द्रियों को अपनी दासी बना कर नहीं रखता और स्वयं को उनका दास बना लेता है, वही ऐसे पापकर्म में प्रवृत्त होता है / अतएव चोरी से बचने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य अपनी इन्द्रियों पर संयम रक्खे और उन्हें स्वच्छन्द न होने दे। दूसरा कारण है-परधन का लोभ, जिसे 'परधम्मि लुद्धा' विशेषण द्वारा उल्लिखित किया गया है / इसका उल्लेख पूर्व में भी किया जा चुका है। अदत्तादान के इस प्रकरण में स्पर्शनेन्द्रिय में आसक्ति-स्त्रियों के प्रति उत्पन्न हुए अनुराग का भी कथन किया गया है / इसका कारण यही जान पड़ता है कि परस्त्री का सेवन अब्रह्मचर्य के साथ अदत्तादान का भी पाप है, क्योंकि परस्त्री अदत्त होती है / आचार्य अभयदेवसूरि ने इस विषय में कोई उल्लेख नहीं किया है। मूल पाठ में कतिपय स्थलों का नामोल्लेख हुआ है / उनका अर्थ इस प्रकार हैशृगाटक-सिंघाड़े के प्राकार का तिकोना मार्ग / त्रिक-जहाँ तीन रास्ते मिलते हों। चतुष्क-चौक, जहाँ चार मार्ग मिलते हैं। चत्वर--जहाँ चार से अधिक मार्ग मिलते हैं। चतुर्मुख-चारों दिशाओं में चार द्वार वालो इमारत, जैसे बंगला, देव मन्दिर या कोई अन्य स्थान / महापथ-चौड़ी सड़क, राजमार्ग / पथ-साधारण रास्ता। ७४–पटारसम्मकारणा जाइयंगमंगा कलुणा सुक्कोट्टकंठ-गलग-तालु-जीहा जायंता पाणीयं विगय-जीवियासा तण्हाइया बरागा तं वि य ण लभंति यज्झपुरिसेहि धाडियंता / तस्थ य स्वर-फरसपडहपट्टिय-कूडागहगाढस्टुणिसट्ठपरामुट्ठा वझयरकुडिजुणियत्था सुरत्तकणवीर-गहियविमुकुल-कंठेगुण-वझदूयमाविद्धमल्लवामा, मरणमयुप्पण्णसेय-मायतणेहुत्तुपियकिलिण्णगत्ता चुण्णगुडियसरीररयरेणुभरियकेसा कुसुभगोकिण्णमुद्धया छिण्ण-जीवियासा घुग्णता वम्झयाणभीया' तिलं तिलं व छिज्जमाणा सरीरविक्कित्तलोहिमोलित्ता कागणिमंसाणि-खावियंता पावा खरफरसहि तालिग्जमाण१. 'वजापाणिप्पया'-पाठ भी है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org