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________________ [प्रश्नव्याकरणसूत्र : धु. 1, अ. 3 अशान्तियुक्त चित्त बाले ये परकीय द्रव्य को हरण करने वाले इसी भव में सैकड़ों कष्टों से घिर कर क्लेश पाते हैं। चोर को बन्दीगृह में होने वाले दुःख ७१–तहेव केइ परस्स दव्वं गवेसमाणा गहिया य हया य बद्धरुद्धा य तुरियं प्रइधाडिया पुरवरं समप्पिया चोरगह-चारभडचाडुकराण तेहि य कप्पडप्पहार-णियप्रारक्खिय-खरफरुसवयणतज्जण-गलच्छल्लुच्छल्लणाहिं विमणा चारगवसहि पवेसिया णिरयवसहिसरिसं / तत्थवि गोमियप्पहारदूमणिब्भच्छण-कडुयवयणभेसणगभयाभिमूया अविखत्तणियंसणा मलिणदंडिखंडणिवसणा उक्कोडालंचपासमग्गणपरायणेहि दुक्खसमुदोरणेहिं गोम्मियभहिं विविहेहिं बंधणेहि / ७१-इसी प्रकार परकीय धन द्रव्य की खोज में फिरते हुए कई चोर (पारक्षकों--पुलिस के द्वारा) पकडे जाते हैं और उन्हें मारा-पीटा जाता है. बन्धनों से बाँधा जाता है और कारागार में कैद किया जाता है। उन्हें वेग के साथ-जल्दी-जल्दी खूब घुमाया-चलाया जाता है। बड़े नगरों में पहुँचा कर उन्हें पुलिस आदि अधिकारियों को सौंप दिया जाता है। तत्पश्चात् चोरों को पकड़ने वाले, चौकीदार, सिपाही-गुप्तचर चाटुकार-उन्हें कारागार में ठूस देते हैं। कपड़े के चाबुकों के प्रहारों से, कठोर-हृदय सिपाहियों के तीक्ष्ण एवं कठोर वचनों को डाट-डपट से तथा गर्दन पकड़ कर धक्के देने से उनका चित्त खेदखिन्न होता है। उन चोरों को नारकावास सरीखे कारागार में जबर्दस्ती घुसेड़ दिया जाता है। (किन्तु कारागार में भी उन्हें चंन कहाँ ?) वहाँ भी वे कारागार के अधिकारियों द्वारा विविध प्रकार के प्रहारों, अनेक प्रकार की यातनाओं, तर्जनाओं, कटुवचनों एवं भयोत्पादक वचनों से भयभीत होकर दुखी बने रहते हैं। उनके पहनने--ओढ़ने के वस्त्र छीन लिये जाते हैं। वहाँ उनको मैले-कुचैले फटे वस्त्र पहनने को मिलते हैं। बार-बार उन कैदियों (चोरों) से लांचरिश्वत माँगने में तत्पर कारागार के रक्षकों-भटों द्वारा अनेक प्रकार के बन्धनों में वे बांध दिये जाते हैं। विवेचन-चौर्यरूप पापकर्म करने वालों की कैसी दुरवस्था होती है, इस विषय में शास्त्रकार ने यहाँ भी प्रकाश डाला है। मूल पाठ अपने आप में स्पष्ट है। उस पर विवेचन की आवश्यकता नहीं है / अदत्तादान करने वालों की इस प्रकार की दुर्दशा लोक में प्रत्यक्ष देखी जाती है। ७२-कि ते? हडि-णिगड-बालरज्जुय-कुदंडग-वरत्त-लोहसंकल-हत्थंदय-बज्झपट्ट-दामकणिककोडणेहि अण्णेहि य एवमाइएहि गोम्मिगभंडोवगरणेहि दुक्खसमुदीरणेहिं' संकोडणमोडणाहिं बझंति मंदपुण्णा / संपुड-कवाड-लोहपंजर-भूमिघर-णिरोह-कव-चारग-कोलग-जुय-चक्कविततबंधणखंभालण-उद्धचलण-अंधविहम्मणाहि य विहेडयंता अवकोडगगाढ-उर-सिरबद्ध-उद्धपूरिय फुरंत-उरकडगमोडणा-मेडणाहिं बद्धा य णीससंता सोसावेढ-उरुयावल-चप्पडग-संधिबंधण-तत्तसलाग-सूइयाकोडणाणि तच्छणविमाणणाणि य खारकडय-तित्त-णावणजायणा-कारणसयाणि बहुयाणि पावियंता 1. "दुक्खसमय मुदीरणेहिं"-पाठ भी है / 2. यहाँ "प्रशुभपरिणया य"-पाठ श्री ज्ञानविमल सूरि की वृत्ति वाली प्रति में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003478
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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