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________________ चोर्यकर्म के विविध प्रकार] दिए जाने के कारण जो जनता द्वारा बहिष्कृत हैं, जो धातक हैं या उपद्रव (दंगा आदि) करने वाले हैं, ग्रामघातक, नगरघातक, मार्ग में पथिकों को लूटने वाले या मार डालने वाले हैं, आग लगाने वाले और तीर्थ में भेद करने वाले हैं,' जो (जादूगरों की तरह) हाथ की चालाकी वाले हैं-जेब या गांठ काट लेने में कुशल हैं, जो जुआरी हैं, खण्डरक्ष-चुगी लेने वाले या कोतवाल हैं, स्त्रीचोर हैं जो स्त्री को या स्त्री की वस्तु को चुराते हैं अथवा स्त्री का वेष धारण करके चोरी करते हैं, जो पुरुष की वस्तु को अथवा (आधुनिक डकैतों की भांति फिरौतो लेने आदि के उद्देश्य से) पुरुष का अपहरण करते हैं, जो खात खोदने वाले हैं, गांठ काटने वाले हैं, जो परकीय धन का हरण करने वाले हैं, (जो निर्दयता या भय के कारण अथवा आतंक फैलाने के लिए) मारने वाले हैं, जो वशीकरण आदि का प्रयोग करके धनादि का अपहरण करने वाले हैं, सदा दूसरों के उपमर्दक, गुप्तचोर, गो चोरगाय चुराने वाले, अश्व-चोर एवं दासी को चुराने वाले हैं, अकेले चोरी करने वाले, घर में से द्रव्य निकाल लेने वाले, चोरों को बुलाकर दूसरे के घर में चोरी करवाने वाले, चोरों की सहायता करने वाले चोरों को भोजनादि देने वाले, उच्छिपक-छिप कर चोरी करने वाले, सार्थ-समूह को लूटने वाले, दूसरों को धोखा देने के लिए बनावटी आवाज में बोलने वाले, राजा द्वारा निगृहीत--दंडित एवं छलपूर्वक राजाज्ञा का उल्लंघन करने वाले, अनेकानेक प्रकार से चोरी करके परकीय द्रव्य हरण करने की बुद्धि वाले, ये लोग और इसी कोटि के अन्य-अन्य लोग, जो दूसरे के द्रव्य को ग्रहण करने को-इच्छा से निवृत्त (विरत) नहीं हैं अर्थात् अदत्तादान के त्यागी नहीं हैजिनमें परधन के प्रति लालसा विद्यमान हैं, वे चौर्य कर्म में प्रवृत्त होते हैं। विवेचन- चोरी के नामों का उल्लेख करके सूत्रकार ने उसके व्यापक स्वरूप का प्रतिपादन किया था। तत्पश्चात् यहाँ यह निरूपण किया गया है कि चोरी करने वाले लोग किस श्रेणी के होते हैं ? किन-किन तरीकों से वे चोरी करते हैं ? कोई छिप कर चोरी करते हैं तो कोई सामने से प्रहार करके, आक्रमण करके करते हैं, कोई वशीकरण मंत्र आदि का प्रयोग करके दूसरों को लूटते हैं, कोई धनादि का, कोई गाय-भैंस-बैल-ऊंट-प्रश्व आदि पशुओं का हरण करते हैं, यहाँ तक कि नारियों और पुरुषों का भी अपहरण करते हैं। कोई राहगीरों को लूटते हैं तो कोई राज्य के खजाने को-आधुनिक काल में बैंक आदि को भी शस्त्रों के बल पर लूट लेते हैं / ___ तात्पर्य यह है कि शास्त्रोक्त चोरी-लूट-अपहरण के प्राचीन काल में प्रचलित प्रकार अद्यतन काल में भी प्रचलित हैं। यह प्रकार लोकप्रसिद्ध हैं अतएव इनको व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है / मूल पाठ और उसके अर्थ से ही पाठक सूत्र के अभिप्राय को भलीभांति समझ सकते हैं। धन के लिए राजाओं का प्राक्रमण ६३-विउलबलपरिग्गहा य बहवे रायाणो परधम्मि गिद्धा सए व दवे असंतुट्ठा परविसए अहिहणति ते लुद्धा परधणस्स कज्जे चउरंगविमत्त-बलसमग्गा णिच्छियवरजोहजुद्धसद्धिय-अहमहमिइदप्पिएहि सेणेहि संपरिवडा पउम-सगड-सूइ-चक्क-सागर-गरुलवूहाइएहिं अणिएहि उत्थरंता अभिभूय हरंति परणाई। - -.. - 1. 'तित्थभेया' का मुनिश्री हेमचन्द्रजी म. ने तीर्थयात्रियों को लटने-मारने वाले' ऐसा भी अर्थ किया है। -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003478
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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