________________ प्रकाशकीय अतीव प्रसन्नता के साथ आगमप्रेमी स्वाध्यायशील पाठकों के कर-कमलों में दसवाँ अंग प्रश्नव्याकरण समर्पित किया जा रहा है / श्रीमद्भगवतीसूत्र और साथ ही प्रज्ञापनासूत्र के दूसरे भाग मुद्रणाधीन हैं। इनका मुद्रण पूत्ति के सन्निकट है / यथासंभव शीघ्र ये भी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किए जा सकेंगे। तत्पश्चात उत्तराध्ययन मुद्रणालय में देने की योजना है, जो सम्पादित हो चुका है। प्रस्तुत अंग का अनुवाद श्रमणसंघ के प्राचार्यवर्य पूज्य श्री आनन्दऋषिजी म. सा. के विद्वान् सन्त श्री प्रवीणऋषिजी म. ने किया है। इसके सम्पादन-विवेचन में पं. श्री शोभाचन्द्रजी भारिल्ल का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है / प्राशा है पाठकों को यह संस्करण विशेष उपयोगी होगा / श्रमणसंघ के युवाचार्य विद्वद्वरिष्ठ पूज्य श्री मिश्रीमलजी म. 'मधुकर' के प्रति, जिनके प्रबल प्रयास एवं प्रभाव के कारण यह विराट् श्रु तसेवा का कार्य सफलतापूर्वक चल रहा है, आभार प्रकट करने के लिए हमारे पास उपयुक्त शब्द नहीं है / / जिन-जिन महानुभावों का आर्थिक, बौद्धिक तथा अन्य प्रकार से प्रत्यक्ष-परोक्ष सहकार प्राप्त हो रहा है और जिसकी बदौलत हम द्रुतगति से प्रकाशन-कार्य को अग्रसर करने में समर्थ हो सके हैं, उन सब के प्रति भी आभार प्रकट करना हमारा कर्तव्य है। अन्त में, घोर परिताप एवं दु:ख के साथ उल्लेख करना पड़ रहा है कि जिन महान् सन्त की सात्त्विक सन्निधि और शुभाशीर्वाद से आगम प्रकाशन का यह पुण्य अनुष्ठान चल रहा था, उन प. पू. उपप्रवर्तक श्री ब्रजलालजी म. सा. का सान्निध्य अब हमें प्राप्त नहीं रहेगा। दिनांक 2 जुलाई, 1983 को धूलिया (खानदेश) में आपका स्वर्गवास हो गया / तथापि हमें विश्वास है कि आपका परोक्ष शुभाशीर्वाद हमें निरन्तर प्राप्त रहेगा और शक्ति प्रदान करता रहेगा / प्रस्तुत आगम उन्हीं महात्मा की सेवा में समर्पित किया जा रहा है। रतनचन्द मोदी अध्यक्ष जतनराज मेहता चांदमल विनायकिया महामंत्री मंत्री श्री आगमप्रकाशन समिति, ब्यावर (राजस्थान) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org