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________________ 66] [अनुत्तरोपपातिकदशा 6. सूर्य 8. ध्वजा 10. पद्मसरोवर 11. समुद्र 12. विमान 13. रत्नराशि 14. नि— म अग्नि राजन् ! प्रभावती देवी ने एक महास्वप्न देखा है / अत: इसका फल अर्यलाभ, भोगलाभ पुत्रलाभ और राज्यलाभ होगा। कालान्तर में पुत्रजन्म हुआ, जिसका नाम महाबलकुमार रखा गया। कलाचार्य के पास 72 कलाओं का अभ्यास करके महाबल कुशल हो गया / आठ राजकन्याओं के साथ महाबल कुमार का विवाह किया गया। महाबलकुमार भौतिक सुखों में लीन हो गया। भगवान् का उपदेश श्रवण कर दीक्षित हो मुनिधर्म अंगीकार किया। तत्पश्चात् महाबल मुनि ने 14 पूर्वो का अध्ययन किया / अनेक प्रकार का तप किया / 12 वर्ष श्रमणपर्याय पालकर, ब्रह्मलोक कल्प में देव रूप में जन्म हुआ। -भगवती शतक 11, उद्देश 11 कोणिक राजा श्रोणिक की रानी चेल्लणा का पुत्र, अंगदेश की राजधानी चम्पा नगरी का अधिपति भगवान महावीर का परम भक्त / कोणिक राजा एक प्रसिद्ध राजा है। जैनागमों में अनेक स्थानों पर उसका अनेक प्रकार से वर्णन मिलता है। भगवती, औपपातिक, और निरयावलिका में कोणिक का विस्तृत वर्णन है / राज्यलोभ के कारण इसने अपने पिता श्रेणिक को कैद में डाल दिया था। श्रेणिक की मृत्यु के बाद कोणिक ने अंगदेश में चम्पानगरी को अपनी राजधानी बनाया था। अपने सहादेर भाई हल्ल और विहल्ल से हार और सेचनक हाथी को छीनने के लिए अपने नाना चेटक से भयंकर युद्ध भी किया था / कोणिक-चेटक युद्ध प्रसिद्ध है। --जैनागमकथाकोष जमाली वैशाली के क्षत्रियकुण्ड का एक राजकुमार था। एक बार भगवान् क्षत्रियकुण्ड ग्राम में पधारे / जमालो भी उपदेश सुनने को पाया। अपनी पाठ पत्नियों का त्याग करके उसने पांच-सौ क्षत्रिय कुमारों के साथ भगवान् के पास दीक्षा ली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003477
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages134
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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