________________ परिशिष्ट-टिप्पण] दो रानियों का समान नाम भी होना असंभव नहीं / वर्तमान में भी कई कुटुम्बों में ऐसा होना बहुत सम्भवित है। हमारे एक परिचित पंजाबी जैन घराने में दो भाइयों की पत्नियों का एक ही नाम 'निर्मला' है. तब एक बड़ी निर्मला और एक छोटी निर्मला ऐसा विभाग करके व्यवहार चलाया जाता है। इसी प्रकार राजा श्रेणिक की समान नाम वाली दो रानियाँ मान लेने से प्रथम वर्ग के लट्ठदन्त की माता अन्य धारिणी थी और द्वितीय वर्ग के लट्ठदन्त की माता कोई दूसरी धारिणी थी, ऐसा समझ लेने पर एक जैसा नाम पुत्रों का हो और माताएं अलग अलग हों यह समाधान भी असंगत नहीं बल्कि संगत और संभव है। अथवा एक धारिणी के ही लट्ठदंत नाम के दो पुत्र हो सकते हैं / तात्पर्य यह कि किसी भी प्रकार से दो लट्ठदन्त होने चाहिए। विशेषज्ञ इस सम्बन्ध में अन्य कोई समाधान उपस्थित करेंगे, तो उसका स्वागत होगा। गुणसिलए : गुण-शिलक 'गुण-शिलक' शब्द में शिलक का 'शि' ह्रस्व है, यह ध्यान में रहे / 'गुणशिल' अथवा 'गुण-शिलक' शब्द का अर्थ इस प्रकार होना चाहिए : गुणप्रधानं शिलं यत्र तत् गुणशिलकम्' / 'शिल' अर्थात् खेत में पड़े हुए अनाज के कणों कोदानों को--एकत्रित करना। जो लोग त्यागी, भिक्षु, मुनि और संन्यासी होते हैं, उनमें कुछ ऐसे भी होते हैं, कि वे अनाज के जो दाने खेत में स्वत: गिरे हुए मिलते हैं, उनको ही एकत्रित करके अपनी आजीविका चलाते रहते हैं। ___ इस प्रकार की चर्या से साधु संन्यासी का बोझ समाज पर कम पड़ता है। गुण प्रधान शिल जहां मिलता हो वह 'गुण-शिलक' है / शिल के द्वारा जीवन चलाने का नाम ऋत है / शिल द्वारा अपना जीवन व्यतीत करने वाले 'कणाद' नाम के एक ऋषि हो गए हैं। उनका 'कणाद' नाम, 'कणों' को–अनाज के दानों को-एकत्रित करके, 'अद' खानेवाला यथार्थ है। 'उञ्छं शिलं तु ऋतम्'----अमर कोश, 16 वैश्य वर्ग, काण्ड 2 श्लोक 2 / 'कणिशायजैनं शिलम्, ऋत तत्'- अभिधान, मयंका०, श्लोक 865-866 / 'गुणसिल' शब्द की दूसरी व्युत्पत्ति इस प्रकार भी की जा सकती है, 'गुणाः शिरसि यस्य यस्मिन् वा तत् गुणशिरः / ' इसका प्राकृत रूप गुणशिल सहज सिद्ध है। 'गुणसील' शब्द भी इस उद्यान के लिए प्रयुक्त होता है। उद्यान के गुणों के सदा विद्यमान रहने के कारण उसे 'गुणशील' भी कहा जाता है। काकन्दी जितशत्रु राजा की राजधानी / घोर तपस्वी धन्ना अनगार की जन्म-भूमि / यह उत्तर भारत की प्राचीन और प्रसिद्ध नगरी थी। भगवान् महावीर के समय में इस नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org