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________________ 40] [ अनुत्तरौपपातिकदशा भगवान् महावीर द्वारा प्रशंसा १६-तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे / परिसा निग्गया। सेणिए निग्गए। धम्मकहा / परिसा पडिगया। तए णं से सेणिए राया समणस्स भगवत्रो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-~ इमासि णं भंते ! इंदभूइ-पामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं कयरे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरयराए चेव ? एवं खलु सेणिया! इमासि इंदभूइ-पामोक्खाणं चोदसम्हं समणसाहस्सीणं धण्णे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरयराए चेव / ___ से केणोणं भंते ! एवं वुच्चइ इमासि जाव [इमासि इंदभूइ-पानोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं] धण्णे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरयराए चेव ? एवं खलु सेणिया! तेणं कालेणं तेणं समएणं कायंदी नामं नयरी जाव [धण्णे दारए] उप्पि पासायडिसए विहरइ। तए णं अहं अण्णया कयाई पुवाणपुवीए चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे जेणेव कायंदी नयरी जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागए / उवागमित्ता प्रहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हामि संजमेणं जाव [तवसा अप्पाणं भावेमाणे] विहरामि / परिसा निग्गया, तहेव जाव' पव्वइए जाव' बिलमिव जाव' श्राहारेइ / धण्णस्स णं अणगारस्स पादाणं शरीरवण्णो सब्बो जाव उसोभेमाणेउवसोभेमाणे चिठ्ठइ। __ से तेण?णं सेणिया! एवं बुच्चइ इमासि चउदसण्हं समणसाहस्सीणं धण्णे अणगारे महादुक्करकारए महाणिज्जरयराए चेव / उस काल और उस समय में राजगृह नामका नगर था / गुणशिलक चैत्य था / श्रोणिक वहां का राजा था। उस काल और उस समय में, श्रमण भगवान महावीर पधारे। परिषदा निकली। राजा श्रेणिक भी निकला। धर्मकथा हई। परिषदा वापिस चली गई। अनन्तर उस श्रोणिक राजा ने श्रमण भगवान् महावीर के सान्निध्य में धर्म को सुनकर, विचार कर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन किया, नमस्कार किया / वन्दन नमस्कार करके, भगवान् से इस प्रकार कहा ‘भंते ! आपके इन इन्द्रभूति-प्रमुख चौदह हजार श्रमणों में कौन अनगार महादुष्कर-कारक है, एवं महानिर्जराकारक है ?' भगवान ने उत्तर दिया-श्रोणिक ! इन इन्द्रभूति-प्रमुख चौदह हजार श्रमणों में धन्य अनगार ही महादुष्करकारक है और महानिर्जरकारक है / 1 अणुत्तरोववाइयदसा वर्ग 3, सूत्र 4. 2. अणुत्तरोबवाइयदसा वर्ग 3, सूत्र 4-5-6. 3. अणुत्तरोबवाइयदसा वर्ग 3, सूत्र 7.. 4. अणुत्तरोववाइयदसा बर्ग 3, सूत्र 7 से 15 तक / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003477
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages134
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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