________________ 16 ] [ अनुत्तरौपपातिकदशा तत्थ णं कायंदीए नयरीए भद्दा नाम सत्थवाही परिवसइ प्रडा जाव [दित्ता वित्ता वित्थिण्णविउल-भवण-सपणासण-जाणवाहणा बहुधण-जायरूव-रयया प्रारोग-पयोग-संपत्ता विच्छड्डिय-पउरभत्तपाणा बहुदासो-दास-गो-महिस-गवेलग-प्पभूया बहुजणस्स] अपरिभूया / तीसे णं भद्दाए सस्थवाहीए पुत धणे नामं दारए होत्था, अहीण जाव [पंचिदियसरीरे लक्वण-वंजण-गुणोववेए माणुम्माणपमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे] पंचधाईपरिग्गहिए / तं जहा-खीरधाईए जहा महब्बलो जाव बावरि कलाओ अहीए [तहा धण्णं कुमारं अम्मापियरो सातिरेगटठवासजायगं चेव गभट्ठ मे बासे सोहणसि तिहिकरणनक्खत्तमुहुत्त सि कलायरियस्स उत्रणेन्ति / तते णं से कलायरिए धणं कुमारं लेहाइयानो गणितप्पहाणाओ सउणरुतपज्जवसाणाओ बावरि कलाओ सुत्तमो न अत्थो अ करणनो य सेहावेति, सिक्खावेति / तं जहा-(१) लेहं (2) गणिय (3) रूदं (4) नट्ट (5) गीय (6) वाइयं (7) सरगय (8) पोक्खरगय (9) समतालं (10) जूय (11) जणवाय (12) पासयं (13) अहावय (14) पोरेकच्चं (15) दगमट्टिय (16) अन्नविहिं (17) पाणविहिं (18) वयविहिं (16) विलेवविहिं (20) सयणविहिं (21) अज्ज (22) पहेलियं (23) मागहियं (24) गाहं (25) गोइयं (26) सिलोयं (27) हिरण्णत्ति (28) सुबन्नत्ति (26) चन्नत्ति (30) आभरणविहिं (31) तरुणीपडिकम्मं (32) इथिलक्खणं (33) पुरिसलक्वणं (34) यलक्खणं (35) गयलक्खणं (36) गोणलक्खणं (37) कुक्कुडलक्खणं (38) छत्तलक्खणं (36) दंडलक्खणं (40) असिलक्खणं (41) मणिलक्खणं (42) कागणिलक्खणं (43) वत्थुविज्ज (44) खंधारमाणं (45) नगरमाणं (46) वूह (47) पडिवूह (48) चारं (46) पडिचारं (50) चक्कवहं (51) गरुलवूह (52) सगडवूह (53) जुद्ध (54) निजुद्ध (55) जुद्धातिजुद्ध(५६) अठिजुद्ध (57) मुठ्ठिजुद्ध (58) बाहुजुद्ध (56) लयाजुद्ध (60) ईसत्थं (61) छरुप्पवाय (62) धणुव्वेय (63) हिरन्नपागं (64) सुवन्नपागं (65) सुसखेडं (66) वट्टखेडं (67) नालियाखेडं (68) पत्तच्छेज्जं (66) कडगच्छेज्जं (70) सजीवं (71) निज्जीवं (72) सउणरुअमिति / तए णं से धष्ण कुमारे बावत्तरिकलापंडिए णवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारसविहिप्पगारदेसीमासाविसारए गोइरई गंधवनदृकुसले यजोहो गयजोही रहजोही बाहुजोहो बाहुप्यमहो] अलं भोगसमत्थे साहसिए वियाल चारो जाए यावि होत्या। सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया-जम्बू ! इस प्रकार उस काल और उस समय में काकन्दी नामकी एक नगरी थी / वह नगरी ऋद्ध स्तिमित (स्थिर) और समृद्ध थी। वहां सहस्राम्रवन नाम का एक उद्यान था, जिसमें समस्त ऋतुओं के फल और फूल सदा रहते थे। उस समय वहां जितशत्रु नामक राजा राज्य करता था। उस काकन्दी नगरी में भद्रा नामको एक सार्थवाही रहती थी। वह धनी तेजस्वी विस्तृत और विपुल भवनों, शय्याओं, आसनों, यानों और वाहनों वाली थी तथा सोना चांदी आदि धन की बहुलता से युक्त थी / अधमर्णी (ऋण लेनेवालों) को वह लेन-देन करने में कुशल थी। उसके यहाँ 1. देखिए वर्ग 1, सूत्र 1. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org