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________________ प्रथम वर्ग / इन सूत्रों से यह भी फलित होता है कि विनयपूर्वक अध्ययन किया हुआ जान ही सफल हो सकता है। जो शिष्य विनय-पूर्वक गुरु से ज्ञान प्राप्त करना चाहता है उस को गुरु सम्यक्-ज्ञान से परिपूर्ण कर देते हैं। तथा जिसका आत्मा ज्ञान से परिपूर्ण होता है, वह सहज ही अन्य आत्माओं का उद्धार करने में समर्थ हो सकता है। अत: इस सूत्र से सिद्ध है कि-गुरुभक्ति से ही श्रुत-ज्ञान की प्राप्ति होती है। जाली कुमार ३-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, रिद्धस्थिमियसमिद्ध। गुणसिलए चेइए / सेभिए राया, धारिणी देवी / सोहो सुमिणे / जाली कुमारो। जहा मेहो अलुट्ठो दानो जाव ["अहिरण्णकोडोप्रो, अट्ठ सुवण्णकोडोलो, गाहानुसारेण भाणियब्वं जाव पेसणकारियानो, अन्नं च विपुलं धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावतेज्ज अलाहि जाव प्रासत्तमाअो कुलवंसानो पकामं दाउं पकामं भोत्त पकामं परिभाए। ___तए णं से जालीकुमारे एगमेगाए भारियाए एगमेगं हिरण्णकोडि दलयति, एगमेगं सुवन्नकोडि दलयति, जाव एगमेगं पेसणकारि दलयति, अन्नं च विपुलं धणकणग जाव परिभाएउ दलयति"] / तए णं से जाली कुमारे उप्पि पासाय जाव ["वरगए फुट्टमाहिं मुइंगमस्थएहि वरतरुणिसंपउत्तहिं बत्तीसइबद्धएहि नाडएहि उवगिज्जमाणे उवगिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधविउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरति"] / "जम्बू ! इस प्रकार उस काल और उस समय में राजगह नामका नगर था। वह: स्तिमित (स्थिर) और समृद्ध था। वहां गुणशीलक चैत्य था। वहाँ का राजा श्रेणिक था और उसकी धारिणी नामकी रानी थी। धारिणी रानी ने स्वप्न में सिंह को देखा। कुछ काल के पश्चात रानी ने मेघकुमार के समान जाली कुमार को जन्म दिया। जाली कुमार का मेघकुमार के समान आठ कन्याओं के साथ विवाह हुआ और पाठ-पाठ वस्तुओं का दहेज दिया; यावत आठ करोड़ हिरण्य (चांदी) आठ करोड़ सुवर्ण, आदि गाथाओं के अनुसार समझ लेना चाहिए यावत आठ-आठ प्रेक्षणकारिणी (नाटक करने वाली) अथवा पेषणकारिणी (पीसनेवाली) तथा और भी विपुल धन, कनक रत्न, मणि मोती शंख, मूगा रक्त रत्न (लाल) आदि उत्तम सारभूत द्रव्य दिया जो सात पीढ़ी तक दान देने के लिए, उपभोग करने के लिए और बँटवारा करने के लिए पर्याप्त था। तत्पश्चात् उस जाली कुमार ने प्रत्येक पत्नी को एक-एक करोड़ हिरण्य दिया, एक-एक सूवर्ण दिया। यावत एक-एक प्रेक्षणकारिणी या पेषणकारिणी दी। इसके अतिरिक्त अन्य विपुल धन कनक आदि दिया, जो यावत् दान देने, भोगोपभोग करने और बँटवारा करने के लिए सात पीढ़ियों तक पर्याप्त था। तत्पश्चात् जालीकुमार श्रेष्ठ प्रासाद के ऊपर रहा हुअा, मानों मृदंगों के मुख फूट रहे हों, इस प्रकार उत्तम स्त्रियों द्वारा किये हुए बत्तीसबद्ध नाटकों द्वारा गायन किया जाता हुया तथा क्रीडा . करता हुअा मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस. रूप और गंध की विपुलता वाले मनुष्य संबन्धी कामभोगों को भोगता हुअा रहने लगा। 1. देखिए इसी समिति द्वारा प्रकाशित अन्तगड पृ. 27 तथा प्रस्तुत सूत्र पृ. 19. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003477
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages134
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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