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________________ प्रथम वर्ग ] कि-अंतकृत् सूत्र में 60 महापुरुषों का वर्णन है और वे अपनी तप-साधना के द्वारा मुक्त हुए हैं, जबकि अनुत्तरौपपातिक सूत्र में वर्णित 33 महापुरुष अपनी तपसाधना के द्वारा अनुत्तर विमानों में गए हैं / अतः अन्तकृत् के अनन्तर ही इस अंग का पाना उचित है। इस सूत्र को उत्थानिका श्रीजम्बू स्वामी के प्रश्न से की गई है। जब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी मोक्ष को प्राप्त हो चुके तब जम्बूस्वामी के चित्त में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि श्रमण भगवान् महावीर ने नौवें अंग में क्या अर्थ वर्णन किया है ? उनकी इस जिज्ञासा को देखकर श्री सुधर्मा स्वामो इस सूत्र का विषय-वर्णन करते हैं। वर्तमान ग्यारह अंग सुधर्मा स्वामी की देन हैं। क्योंकि अङ्गसूत्रों में ऐसे भी पाठ प्राप्त होते हैं कि धन्ना अनगार ने एकादश अङ्गों का अध्ययन किया था और प्रस्तुत सूत्र में मुख्य रूप से धन्ना अनगार का ही विशद विवरण प्राप्त होता है। अत: प्रश्न समाधान चाहता है कि उन्होंने नौवे कौन से अङ्ग का अध्ययन किया होगा? इस समय जो अनुत्तरोपपातिक-अंग है उसमें तो धन्ना अनगार का पादपोपगमन अनशन से निधन पर्यन्त और अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने तक का संपूर्ण वर्णन मिलता है / अतः निर्विवाद सिद्ध होता है कि यह सुधर्मास्वामी की ही वाचना है और वह भी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाणपद-प्राप्ति के अनंतर ही की गई है। इस सूत्र की हस्त-लिखित प्रतियों में भी पाठ-भेद मिलते हैं जैसे-- "तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे होत्था / तस्स णं रायगिहे नाम नयरस्स सेणिए नाम राया होत्था वण्णो / चेलणाए देवी। तत्थ ण रायगिहे नामं नयरे बहिया उत्तर-पुरथिमे दिसीभाए ए नाम चेइए होत्था / तेण कालेण तेण समएण रायगिहे नामं नयरे अज्ज-सुहम्मे नाम थेरे जाव गुणसेलए नाम चेइए तेणेव समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहियो, परिसा पडिगया?" "तेणं कालेणं तेण समएण जंबू जाव पज्जुवासमाण एवं वयासी"--- यहाँ प्रथम पाठ भाषादृष्टि से भी और अर्थदृष्टि से भी असंगत प्रतीत होता है। क्योंकि इस सत्र की रचना श्रमण भगवान महावीर के निर्वाण के अनन्तर ही हई है और श्रणिक महाराज तो भगवान् के विद्यमान होते हुए ही मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। अत: शास्त्रोद्धार-समिति द्वारा प्राप्त शुद्ध प्रति में जो मूल सूत्र है वह ठीक प्रतीत होता है / सूत्र में विशेष विवरण धन्ना अनगार की उपमाओं से अलंकृत हुआ है। शेष सूत्रों को सरल जानकर बिना विवरण के छोड़ दिया गया है। ये आगम अर्थ की दृष्टि से सुगम होने पर भी ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्व के हैं। प्रस्तुत आगम में राजगृह नगर का केवल नाम ही दिया गया है। नगर का विशेष वर्णन औपपातिक-सूत्र में आता है। अत: जानने की इच्छा वाले जिज्ञासु के लिए औपपातिक-सूत्र ही देखना चाहिए। ____२-तए णं से सुहम्मे अणगारे जम्बू अणगारं एवं वयासी---एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाव' संपत्तणं नवमस्स अंगस्स अणसरोववाइयदसाणं तिण्णि वग्गा पण्णत्ता। 1. देखिए सू. 1. . .-... -. " - ..--. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003477
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages134
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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