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________________ बुद्धि से एक क्षण में सुलझा देते थे। उन्होंने मेधकुमार की माता धारिणी और कुरिणक की माता चेलना का दोहद अपनी कुशाग्र बुद्धि से सम्पन्न किया था। अपनी लघुभाता चेलगा और श्रेणिक का विवाह सम्बन्ध भी सानन्द सम्पन्न कराया था। उनके बद्धि के चमत्कार की अनेक घटनाएं जैन साहित्य में अंकित हैं। उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योत के विकट राजनैतिक संकट से श्रेणिक को मुक्त किया था / श्रमणधर्म को ग्रहण करना अत्यधिक कठिन है यह अभयकुमार अच्छी तरह से जानते थे। एकबार एक द्रमक (लकड़हारे) ने गणधर सुधर्मा के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। लोगों ने उसका परिहास किया / अभयकुमार को ज्ञात होने पर उन्होंने सार्वजनिक स्थान पर एक-एक करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का अम्बार लगाया। और यह उदघोषणा करवायी कि ये तीन-कोटि स्वर्णमुद्राएं वह व्यक्ति ले सकता है जो जीवन भर के लिये स्त्री, अग्नि और सचित्त पानी का परित्याग करे / स्वर्ण मुद्राओं को निहार कर सभी का मन ललचाया, किन्तु शर्त को सुनकर कोई भी आगे नहीं बढ़ सका / अभय कुमार ने उन सभी पालोचकों के सामने कहा-द्रमक मुनि कितना महान है, जिस ने जीवन भर के लिये स्त्री, अग्नि और सचित्त पानी का परित्याग किया है। आप उस का उपहास करते हैं। सभी द्रमक मुनि के महान् त्याग से प्रभावित हुये और उन्हें श्रमण धर्म का महत्त्व ज्ञात हुआ।६१ सूत्रकृतांग-नियुक्ति,६२ तथा त्रिषष्ठिशलाका पुरुषचरित्र के अनुसार अभयकुमार ने प्रार्द्र कुमार को धोपकरण उपहार के रूप में प्रेषित किये थे, जिससे वह प्रतिबद्ध होकर श्रमण बना था। अभयकुमार के संसर्म में आकर ही राजगृह का क्रूर कसायी काल शौकरिक का पुत्र सुलसकुमार भगवान् महावीर का परमभक्त बना था / 64 अभयकुमार की धार्मिक भावना के अनेक उदाहरण जैन साहित्य में उङ्कित हैं। कथाकार कहते हैंएक बार अभय ने भगवान् महावीर के समक्ष जिज्ञासा प्रस्तुत की कि अन्तिम मोक्षगामी राजा कौन होगा? भगवान ने कहा - बीतभय का राजा उदायन जो मेरे निकट संयम स्वीकार कर चुका है। भगवान को यह बात सुनकर अभय मन ही मन सोचने लगा-यदि मैं राजा बन गया तो मोक्ष नहीं जा सकूगा। अत: कुमारावस्था में ही दीक्षा ग्रहण कर लू / उस ने सम्राट् श्रेणिक से अनुमति प्रदान करने के हेतु नम्र निवेदन किया। श्रेणिक ने कहा—अभी तुम्हारी उम्र दीक्षा लेने की नहीं है। दीक्षा लेने की उम्र मेरी है। तुम राजा बनकर प्रानन्द का उपभोग करो / अभयकुमार के अत्यधिक प्राग्रह पर श्रेणिक ने कहा—जिस दिन रुष्ट होकर मैं तुम्हें कह दूँदूर हट जा, मुझे अपना मुह न दिखा; उसी दिन तू श्रमण बन जाना। कुछ समय के पश्चात् भगवान महावीर राजगह में पधारे। भगवान के दर्शन कर महारानी चेलना के साथ राजा लौट रहा था / सरिता के किनारे राजा श्रेणिक ने एक मुनि को ध्यानस्थ देखा। सर्दी बहुत ही तेज थी। महारानी का हाथ नींद में प्रोढ़ने के वस्त्र से बाहर रह गया था और हाथ ठिठुर गया था। उस की नींद उचट गई और मुनि का स्मरण आने पर अचानक मुह से निकल पड़ा-'वे क्या करते होंगे !' रानी के शब्दों ने राजा के मन में अविश्वास पैदा कर दिया। प्रात:काल वह भगवान के दर्शन को चल दिया। चलते समय अभय कुमार को यह आदेश दिया कि चेलना के महल को जला दो, यहाँ पर दुराचार पनपता है / अभयकुमार ने राज 58. ज्ञाताधर्मकथा 13 59. निरयावलिया--१ 60. क-प्रावश्यकचरिण-उत्तरार्ध पत्र–१५९, 163 ख-त्रिषष्ठि--१०-११-१२४ से 293 / 61. धर्मरत्नप्रकरण--अभयकुमार कथा 1 // 30 // 62. सूत्रकृतांगनियुक्ति टीका सहित 2 / 6 / 136 / 63. क-त्रिषष्टि 1017 / 177-179, भारतीय इतिहास : एक दृष्टि पृष्ठ 67, 67 / 64, योगशास्त्र-स्वोपज्ञवृत्ति-१/३०, पृष्ठ 91 से ९५---प्राचार्य हेमचन्द्र / [11] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003477
Book TitleAgam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages134
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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