________________ 31ঠাঠা সাদুল হাসান, ওয়ান্তg द्वारा ও নষ্ট সন্তাছান 3Iাঠা (1) प्राचारांग प्रथम भाग 30) रु० (2) आचारांग द्वितीय भाग __35) 20 (3) उपासकदशांग 25) 20 (4) ज्ञाताधर्मकथांग 45) 20 (5) अन्तकृद्दशांग 25) 20 (6) अनुत्तरोपपातिकदशांग 16) रु० विभिन्न विद्वानों द्वारा सम्पादित, शुद्ध मूल पाठ, हिन्दी भाषा में अनुवाद, विवेचन, श्रीदेवेन्द्र मुनिजी शास्त्री द्वारा लिखित विस्तृत प्रस्तावना तथा विविध परिशिष्टों के साथ, अद्यतन शैली में, उत्कृष्ट छपाई और सुन्दर श्वेत कागज पर मुद्रित हैं / मूल्य लागत से भी कम रक्खा गया है / __ अग्रिम ग्राहक बनने वाले संघों, ग्रन्थालयों तथा अन्य सार्वजनिक संस्थानों को 700) रु. में पूरी प्रागमवत्तीसी (जो लगभग चालीस से अधिक भागों में पूर्ण होगी) दी जाएगो / अग्रिम ग्राहक सज्जनों को 1000) रु. में दी जाएगी। प्रकाशनाधीन आगम सूत्रकृतांग (दोनों श्रुतस्कन्ध) स्थानाङ्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org