________________ परिशिष्ट - शब्दार्थ ] [87 तव =तेरा तेरसमे =तेरहवाँ तब-तेय-सिरीए = तप और तेज की लक्ष्मी से तेरसवि = तेरह की तव-रूव-लावन्ने =तप के कारण उत्पन्न हुई सुन्दरता तेसि उनके तवसा = तप से तो तो तवेणं-तप से त्ति= इति तवो-कम्मतपः क्रिया थावच्चापुत्तस्स-थावच्चा पुत्र की, थावच्चा नामक तवो-कम्मेणं -तप-कर्म से गाथापत्नी का पुत्र, जिसने एक सहस्र मनुष्यों तस्स = उसका के साथ दीक्षा ली तहा= उसी तरह थावच्चापुत्तो-थावच्चा पुत्र तहा-रूवाणं = तथा-रूप, शास्त्रों में वर्णन किये हुए थासयावली= दर्पणों (पारसियों) की पंक्ति ___ गुणों से युक्त साधुओं का थेरा=स्थविर भगवान तहेव = उसी प्रकार थेराणं = स्थविर भगवन्तों का ताए= उस थेरेहि - स्थविरों के (से) ताओ उस दस-दश तामेव - उसी दसमे = दशवाँ, दशम तारएणं = दूसरों को तारने वाले दसमो-दशम, दशवां तालियंट-पत्त = ताड़ के पत्त का पंखा दामो- दहेज ति- इति समाप्ति या परिचयबोधक अव्यय दारए- बालक तिकटु = इस प्रकार करके दारयं = बालक को तिक्खुत्तो- तीन वार दिन्ना = दो हुई तिण्णि - तीन दिवसं दिन तिण्हं - तीन का दिसं = दिशा को तित्थगरेणंचार तीर्थों की स्थापना करने वाले दोहदंते- दीर्घदन्त कुमार द्वारा दीहसेणे = दीर्घसेन कुमार तिन्नेणं -संसार-सागर से पार हुए दुमसेणे = द्र मसेन तीसे = उस दुमे =द्रम कुमार तुब्भेणं = पाप से दुरुहंति = प्रारोहण करते हैं, चढ़ते हैं तुमं= तुम दुरूहति = प्रारोहण करता है, चढ़ता है ते=वे दूरंदूर तेएणं-तेज से देवस्स-देव की तेणं = उस देवत्ताए-देव-रूप से तेणठेणं = इस कारण देव-लोगायो- देवलोक से तेणेव = उसी ओर देवाणु प्पियाणं = देवों के प्रिय (आप) का तेत्तीसं = तेतीस देवाणु प्पिया- देवों के प्रिय (तुम) तेरस = तेरह देवी = राज-महिषी, पटरानी तेरसहवि-तेरहों की देवे= देव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org