________________ 84] उडढं = ऊँचे उण्हे = गर्मी में उदरं = पेट उदर-भायण = उदर-भाजन, पेट रूपी पात्र उदर-भायणेणं - उदर-भाजन से उदर-भायणस्स- उदर-भाजन की उप्पि =ऊपर उब्भड-घटामुहे = घड़े के मुख के समान विकराल मुख वाला उम्मक्क-बालभाव =बालकपन से अतिक्रान्त. जिसने बचपन पार किया है उयरंति = उतरते हैं उर-कडग-देस-भाएणं = वक्षस्थल (छाती) रूपी चटाई के विभागों से उर-कडयस्स = छाती रूपी चटाई की उवयालि = उपजालि कुमार उववजिहिंति = उत्पन्न होंगे उववण्णे, न्ने = उत्पन्न हुया उववायो= उपपात, उत्पत्ति उवसोभेमाणे = शोभायमान होता हुआ उवागच्छति = आता है उवागवे =पाया उब्वुड-णयणकोसे = जिसकी आँखें भीतर धंस गई हैं ऊरुस्स = ऊरुओं का ऊरू=दोनों ऊरू एएसि- इनके विषय में, इनका एक्कारस = ग्यारह एग-दिवसेणं = एक ही दिन में एयं इस एयारूवे इस प्रकार का एवं = इस प्रकार एव ही, निश्चयार्थ बोधक अव्यय एवामेव=इसी प्रकार एसणाए एषणा-समिति = उपयोगपूर्वक आहार आदि की गवेषणा से [ अनुत्तरोपपातिकदशा ओयरंति - उतरते हैं अोरालेणं = उदार-प्रधान कई = कितने कंक-जंघा=कङ्क नामक पक्षी की जंघा कंपण-वातियो= कम्पनवायु के रोग वाला व्यक्ति कट्ठ-कोलंबए = लकड़ी का कोलंब--पात्र विशेष कट्ठ-पाउया = लकड़ी की खड़ाऊँ कडि-कडाहेणं = कटि (कमर) रूपी कटाही से कडि-पत्तस्स = कटि-पत्र की, कमर की कण्ण = कान कण्णाण = कानों की कण्हो= कृष्ण वासुदेव कतरे कौनसा कदाति-कभी, कदाचित् कन्नावली = कान के भूषणों की पंक्ति कप्पति = कल्पता है, योग्य है कप्पे = कल्प, वैमानिक देवों के सौधर्म आदि विमान कय-लक्खण =सफल लक्षण वाला कयाइ (ति) = कदाचित्, कभी करग-गीवा-करवे (मिट्टी के छोटे से पात्र) __ की ग्रीवा अर्थात् गला करेंति करते हैं करेति = करता है करेह = करो कल-संगलिया=कलाय-धान्य विशेष की फली कलातो=कलाएँ कलाय-संगलिया कलाय की फली कहिं = कहाँ कहेति= कहता है काउस्सग्ग = कायोत्सर्ग, धर्म-ध्यान काक(गं)दी-काकन्दी नाम की नगरी काक-जंघा = कौवे की जाँघ, काक-जंघा नामक ओषधि विशेष कागंदीए = काकन्दी नगरी में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org