________________ पारिभाषिक शब्दकोष 1. अंग गणधरप्रणीत जैन आगमसाहित्य / प्राचारांग से दृष्टिवाद तक बारह अंग हैं / [दृष्टिवाद लुप्त है / 2. अन्तगडदसा 8 वाँ अङ्गसूत्र / इसमें उसी भव में अन्तिम श्वासोच्छ्वास के साथ संसार का अन्त करने वाले-मोक्ष प्राप्त करने वाले साधकों के जीवन का वर्णन है।। 3. अणगार जिसके अगार-घर-न हो, त्यागी, साधु, भिक्षु / 4. अपरितंतजोगी खेद-रहित योग वाला, खेदशून्य-समाधि वाला, संयम-साधना में न थकने वाला साधक ! 5. अभिग्गह प्रतिज्ञा, भोजन आदि लेने में पदार्थों की मर्यादा बाँधना, विशेष प्रकार का नियम लेना। 6. पायार-भंडय प्राचार पालने के उपकरण–पात्र, मुखवस्त्रिका और रजोहरण आदि / 7. आयंबिल तप विशेष, रूक्ष आहार ग्रहण करना, स्वादजय की साधना / 8. आउक्खय, भवक्खय, ठिइक्खय प्रायु-कर्म के दलिकों का क्षय / भव का क्षय, वर्तमान नर नारक आदि पर्याय का अन्त / भुज्यमान आयुकर्म की स्थिति का अर्थात् कालमर्यादा की समाप्ति / 6. ईरियासमिय चलने-फिरने में, आने जाने में उपयोग (विवेक) रखने वाला, अर्थात् यतना-सावधानी से गमन करने वाला। 10. उववाय आत्मा औपपातिक है, देव और नारक भव में उत्पत्ति / 11. उज्झियधम्मिय ऐसा पदार्थ जो हेय अर्थात् छोड़ने योग्य हो, जिसे दूसरों ने त्याग दिया हो / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org