________________ गुरुवयं उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म , जो युवाचार्यश्री के निकटतम स्नेही सहयोगी व सहपाठी रहे हैं, उनकी भी यही मंगल मनीषा थी कि प्रागमों का कार्य आज के युग में अत्यधिक प्रावश्यक है। जिस के अध्ययन से ही व्यक्ति भौतिकवाद की चकाचौंध से अपने आप को बचा सकता है। मुझे परम आह्लाद है कि आगम सम्पादन और प्रकाशन का कार्य अत्यन्त द्रतगति से चल रहा है। युवाचार्यश्री के पथप्रदर्शन में प्रागमों के अभिनव संस्करण प्रबुद्ध पाठकों के करकमलों में पहुंच रहे हैं और उन्हें अत्यन्त स्नेह से पाठकगण अपना रहे हैं। प्रस्तुत संस्करण को सर्वश्रेष्ठ बनाने में प्रज्ञामूर्ति, सम्पादनकलामर्मज्ञ श्रीशोभाचन्द्र जी भारिल्ल का अत्यधिक श्रम भी उल्लेखनीय है। आशा है यह संस्करण प्रागम-अभ्यासी, स्वाध्यायप्रेमी व्यक्तियों के लिये अत्यन्त उपयोगी रहेगा। इस सुरभित सुमन को सुगन्ध मुक्त रूप से दिग्दिगन्त में फैले, यही मेरी मंगल भावना है / // देवेन्द्र मुनि शास्त्री जैन स्थानक नीमच सिटी (मध्यप्रदेश) दि० 28 मार्च 1981 [ 32] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org