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________________ परिशिष्ट 2] [ 163 चम्पा उस युग में व्यापार का प्रमुख केन्द्र था, जहाँ पर माल लेने के लिए दूर-दूर से व्यापारी पाते थे और चम्पा के व्यापारी भी माल लेकर मिथिला, अहिच्छत्रा और पिहुँड (चिकाकोट और कलिंगपट्टम का एक प्रदेश) प्रादि में व्यापारार्थ जाते थे / ' चम्पा और मिथिला में साठ योजन का अन्तर था। (4) जम्बूद्वीप जैनागमों की दृष्टि से इस विशाल भूमण्डल के मध्य में जम्बूद्वीप है। इसका विस्तार एक लक्ष योजन है और यह सबसे लघ है। इसके चारों ओर लवणसमद्र है। लवणसमद्र के चारों ओर धातकीखण्ड द्वीप है। इसी प्रकार आगे भी एक द्वीप और एक समुद्र है और उन सब द्वीपों और समुद्रों की संख्या असंख्यात है। अन्तिम समुद्र का नाम स्वयंभूरमण समुद्र है। जम्बूद्वीप से दूना विस्तार वाला लवणसमुद्र है और लवणसमुद्र से दुगुना विस्तृत धातकीखण्ड है। इस प्रकार द्वीप और समुद्र एक दूसरे से दूने होते चले गये हैं।" इसमें शाश्वत जम्बूवृक्ष होने के कारण इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप पड़ा / जम्बूद्वीप के मध्य में सुमेरु नामक पर्वत है जो एक लाख योजन ऊंचा है। जम्बुद्वीप का व्यास एक लाख योजन है। इसकी परिधि 3,16,227 योजन, 3 कोस 128 धनुष, 13 / / अंगुल, 5 यव और 1 यूका है। इसका क्षेत्रफल 7,60,56,64,150 योजन 11 / / कोस, 15 धनुष और 2 / / हाथ है।११ श्रीमद्भागवत में सात द्वीपों का वर्णन है / उसमें जम्बूद्वीप प्रथम है / 12 1. (क) ज्ञाताधर्मकथा 8, पृ 97, 5, पृ. 121-15 पृ. 157 (ख) उत्तराध्ययन 21/2 2. लोकप्रकाश सर्ग 15, श्लोक 6 3. वही. श्लोक 18 4. वही. श्लोक 26 5. वही. श्लोक 28 6. वही. 15/31-32 7. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सटीक वक्षस्कार 4, सू. 103, पत्र 359-360 8. वही. 4/113. पत्र 359/2 9. (क) समवायांग सूत्र 124, पत्र 207/2, प्र. जैन धर्म प्रचारक सभा, भावनगर (ख) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सटीक वक्षस्कार 1/10/67 (ग) हरिवंशपुराण 5/4-5. 10. (क) लोकप्रकाश 15/34-34. (ख) हरिवंशपुराण 5/4-5. 11. (क) लोकप्रकाश 15/36-37 (ख) हरिवंशपुराण 5/6-7 12. श्रीमद्भागवत प्र. खण्ड, स्कंध 4, अ. 1, पृ. 546 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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