________________ अष्टम वर्ग ] [ 157 किया, करके पचौला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके चौला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके छः उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके सात उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके पाठ उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके सात उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके नव उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके आठ उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके नव उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके सात उपवास किये, करके सर्वकामगुरणयुक्त पारणा किया, करके आठ उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके छह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके सात उपवास किये, करके सर्वकामगुरणयुक्त पारणा किया, करके पांच उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके छह उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके चौला किया, करके सर्व कामगुणयुक्त पारणा किया, करके पचौला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके तेला किया, करके सर्व कामगुरगयुक्त पारणा किया, करके चौला किया, करके सर्व कामगुणयुक्त पारणा किया, करके वेला किया, करके सर्व कामगुरगयुक्त पारणा किया, करके तेला किया, करके सर्व कामगुणयुक्त पारणा किया, करके उपवास किया, करके सर्व कामगुक्तयुक्त पारणा किया, करके बेला किया, करके सर्व कामगुरणयुक्त पारणा किया, करके उपवास किया, करके सर्व कामगुणयुक्त पारणा किया। इसी प्रकार चारों परिपाटियां समझनी चाहिये / एक परिपाटी में छह मास और सात दिन लगे। चारों परिपाटियों का काल दो वर्ष और अट्ठाईस दिन होते हैं यावत् महाकाली प्रार्या सिद्ध विवेचन-आर्या महाकाली ने 'लघुसिहनिष्क्रीडित तप' की आराधना की थी। प्रस्तुत सूत्र में इसे "खुड्डागं सीनिक्कीलियं" कहा है, जिसका अर्थ है--जिस प्रकार गमन करता हुआ सिंह अपने अतिक्रान्त मार्ग को पीछे लौटकर फिर देखता है, उसी प्रकार जिस तप में अतिक्रमण किए हुए उपवास के दिनों को फिर से सेवन करके आगे बढ़ा जाए।' ___ सिंहनिष्क्रीडित तप दो प्रकार का होता है, एक "लघुसिंहनिष्क्रीडित और दूसरा महासिंहनिष्क्रीडित तप" / प्रस्तुत अध्ययन में वर्णित आर्या महाकाली ने लघुसिंह निष्क्रीडित तप की आराधना की। इस तप की भी चार परिपाटियाँ होती हैं। एक परिपाटी में छह मास और सात दिन लगते हैं / 33 दिन पारणे में जाते हैं। इस तरह प्रथम परिपाटी 6 मास 7 दिन में सम्पन्न होती है। चारों परिपाटियों में दो वर्ष और अट्ठाईस दिन होते हैं। अगले पृष्ठ पर प्रदर्शित स्थापना यन्त्र से यह स्पष्ट परिलक्षित होता है / जैसे कालीदेवी ने रत्नावली तप की प्रथम परिपाटी के पारणे में दूध घृतादि सभी पदार्थों को गहण किया, दूसरी परिपाटी के पारणे में इन रसों को छोड़ दिया, तीसरी परिपाटी में लेपमात्र का भी त्याग कर दिया तथा चतुर्थ परिपाटी में उपवासों का पारणा आयंबिलों से किया, वैसे ही महाकाली देवी ने लघुसिंह-निष्क्रीडित तप की प्रथम परिपाटी में विगयों को ग्रहण किया, दूसरी में 1. अन्तकृतदशांगसूत्र-पत्र-२८/१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org