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________________ द्वितीय अध्ययन सुकाली सुकाली का कनकावली तप ५-तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी। पुण्णभद्दे चेइए। कोणिए राया। तत्थ णं सेणियस्स रण्णो भज्जा, कोणियस्स रण्णो चल्लमाउया सुकाली नामं देवी होत्या। जहा काली तहा सुकाली वि निक्खंता जाव' बहूहि जाव' तवोकम्मेहि अप्पाणं मावेमाणी विहरइ।। तए णं सा सुकाली प्रज्जा अण्णया कयाइ जेणेव प्रज्जचंदणा अज्जा जाब इच्छामि णं अज्जायो ! तुम्भेहि अन्भणण्णाया समाणी कणगावली-तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए / एवं जहा रयणावली तहा कणगावली वि, नवरं-तिसु ठाणेसु अट्ठमाई करेइ, हिं रयणावलीए छट्ठाई। एक्काए परिवाडीए संवच्छरो, पंच मासा, बारस य अहोरत्ता। चउण्हं पंच वरिसा नव मासा अट्ठारस दिवसा / सेसं तहेव / नव वासा परियाओ जाय सिद्धा। उस काल और उस समय में चंपा नाम की नगरी थी। वहाँ पूर्णभद्र उद्यान था और कोणिक राजा वहां राज्य करता था। उस नगरी में श्रेणिक राजा की रानी और कोणिक राजा की छोटी माता सुकाली नाम की रानी थी। काली की तरह सुकाली भी प्रवजित हुई और बहुत से उपवास आदि तपों से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। फिर वह सुकाली आर्या अन्यदा किसी दिन आर्य-चन्दना आर्या के पास आकर इस प्रकार बोली- "हे आर्ये ! आपकी आज्ञा हो तो मैं कनकावली तप अंगीकार करके विचरना चाहती हूँ।" आर्या चन्दना की आज्ञा पाकर रत्नावली के समान सुकाली ने कनकावली तप का अाराधन किया। विशेषता इसमें यह थी कि तीनों स्थानों पर अष्टम-तेले किये जब कि रत्नावली में षष्ठ-बेले किये जाते हैं / एक परिपाटी में एक वर्ष, पाँच मास और बारह अहोरात्रियां लगती हैं / इस एक परिपाटी में 88 दिन का पारणा और 1 वर्ष, 2 मास 14 दिन का तप होता है / चारों परिपाटी का काल पांच वर्ष, नव मास और अठारह दिन होते हैं / शेष वर्णन काली आर्या के समान है / नव वर्ष तक चारित्र का पालन कर यावत् सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गई। विवेचन-कनकावली तप और रत्नावली तप में इतना ही भेद है कि रत्नावली में जहाँ पाठ बेले तथा 34 बेले किये जाते हैं, वहाँ कनकावली तप में आठ तेले और 34 तेले किये जाते हैं। शेष तप के दिन बराबर हैं। पारणे में भी समानता है। कनकावली तप की। एक वर्ष पाँच मास और 12 दिन लगते हैं। इस प्रकार चारों परिपाटियों के 5 वर्ष : मास और 18 दिन होते हैं / कनकावली की प्रथम परिपाटी की रूपरेखा अगले पृष्ठ पर प्रदर्शित यंत्र द्वारा स्पष्ट होती है। 1. वर्ग 5, सूत्र 5-6 2. वर्ग 5, सूत्र 6 3. वर्ग 8, सूत्र 4 4. वर्ग 5, सूत्र 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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