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________________ [ 147 अष्टम वर्ग ] थी। वहाँ पूर्णभद्र नाम का उद्यान था। वहाँ कोणिक राजा राज्य करता था। उस चम्पानगरी में श्रोणिक राजा की रानी और महाराजा कोणिक की छोटी माता काली नाम की देवी थी। औपपातिकसूत्र के अनुसार उसका वर्णन कहना चाहिए। नन्दा देवी के समान काली रानी ने भी प्रभ महावीर के समीप श्रमणीदीक्षा ग्रहण करके सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया एवं बहुत से उपवास, बेले, तेले अादि तपस्या से अपनी आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। काली आर्या का रत्नावली तप तए णं सा कालो अज्जा अण्णया कयाइ जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता एवं क्यासी "इच्छामि णं अज्जायो ! तुब्भेहि अन्भणुण्णाया समाणी रयणालि तवं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए।" अहासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंध करेहि। तए णं सा कालो अज्जा प्रज्जचंदणाए अन्भणण्णाया समाणी रयणावलि तवं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छ8 कर इ, करता सव्यकामगुणियं पार इ। अट्ठमं कर इ, करता सव्वकामगुणियं पार इ। अट्ठ छट्ठाई कर इ, करत्ता सव्वकामगुणियं पारे / चउत्थं कर इ, करता सव्वकामगुणियं पारइ। छटुं कर इ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पार इ / अट्ठमं करे इ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पार इ। दसमं कर इ, करेत्ता सवकामगुणियं पारइ। दुवालसमं कर इ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पार इ / चोद्दसमं कर इ, करता सम्वकानगुणियं पारे / सोलसमं कर इ, करता सम्वकामगुणियं पार इ / अट्ठारसमं करे इ, करता सम्बकामगुणियं पारइ / बोसइमं कर इ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ / बावीसइप्नं करेई, करत्ता सव्वकामगुणियं पारइ / चउबीसइमं कर इ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे / छन्वीसइमं कर इ, करत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ / अट्ठावीसइमं कर इ, करता सब्वकामगुणियं पारइ। तीसइमं कर इ, करत्ता सव्वकामगुणियं पार इ / बत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारइ। चोत्तीसइमं कर इ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारइ। चोत्तीसं छटाई कर इ, करत्ता सम्वकामगुणियं पार इ / चोत्तीसइमं कर इ, करता सव्वकामगुणियं पार इ / बत्तीसइमं करे इ, करत्ता सव्वकामगुणियं पार इ / तीसइमं कर इ, करता सव्वकामगुणियं पारइ। अट्ठावीसइमं कर इ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारइ। छब्बीसइमं कर इ, करत्ता सव्वकामगुणियं पार इ। चउवीसइमं करे इ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पार इ। बावीसइमं कर इ, करत्ता सव्वकामगुणियं पार इ / वीसइमं करेइ, करत्ता सव्वकामगुणियं पार इ। अट्ठारसमं कर इ, करता सव्वकामगुणियं पारे इ। सोलसमं कर इ, करत्ता सम्बकामगुणियं पार इ / चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्व कामगुणियं पार इ / बारसमं कर इ, करता सव्वकामगुणियं पार है। दसमं कर इ, करता सव्वकामगुणियं पार इ / अट्ठमं कर इ, करता सव्वकामगुणियं पार इ / छठें कर इ, करता सधकामगुणियं पारइ। चउत्थं कर इ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पार इ / अट्ठमं कर इ, करता सम्वकामगुणियं पारे / छठें कर इ, करता सव्वकामगुणियं पारइ। चउत्थं कर इ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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