________________ पहला अध्ययन : गाथापति आनन्द] [17 छूटे हुए, मोचक-दूसरों को छुड़ाने वाले, बुद्ध-बोद्धव्य-जानने योग्य का बोध प्राप्त किये हुए, बोधक-औरों के लिए बोधप्रद, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, शिव-कल्याणमय, अचल-स्थिर, निरुपद्रव, अन्तरहित, क्षयरहित, बाधारहित, अपुनरावर्तन-जहाँ से फिर जन्म-मरण रूप संसार में आगमन नहीं होता, ऐसी सिद्धि-गति--सिद्धावस्था नामक स्थिति पाने के लिए संप्रवृत्त, अर्हत्-- पूजनीय, रागादिविजेता, जिन, केवली-केवलज्ञान युक्त, सात हाथ की दैहिक ऊंचाई से युक्त, समचौरस-संस्थान-संस्थित, वज्र-ऋषभ-नाराच-संहनन-अस्थिबन्ध युक्त, देह के अन्तर्वर्ती पवन के उचित वेग-गतिशीलता से युक्त, कंक पक्षी की तरह निर्दोष गुदाशय युक्त, कबूतर की तरह पाचनशक्ति युक्त, उनका अपान-स्थान उसी तरह निर्लेप था जैसे पक्षी का, पीठ और पेट के बीच के दोनों पार्श्व तथा जंघाएं सपरिणत-सन्दर-सुगठित थीं, उनका मख पद्म-कमल अथवा पद्म नामक सगन्धित द्रव्य तथा उत्पल-नील कमल या उत्पलकुष्ट नामक सुगन्धित द्रव्य जैसी सुरभिमय निःश्वास से युक्त था, छवि-उत्तम छविमान्-उत्तम त्वचा युक्त, नीरोग, उत्तम, प्रशस्त, अत्यन्त श्वेत मांस युक्त, जल्लकठिनाई से छूटने वाला मैल, मल्ल- आसानी से छूटनेवाला मैल, कलंक—दाग, धब्बे, स्वेदपसीना तथा रज-दोष-मिट्टी लगने से विकृति-वजित शरीर युक्त, अतएव निरुपलेप-अत्यन्त स्वच्छ, दीप्ति से उद्योतित प्रत्येक अंगयुक्त, अत्यधिक सघन, सुबद्ध स्नायुबंध सहित, उत्तम लक्षणमय पर्वत के शिखर के समान उन्नत उनका मस्तक था, बारीक रेशों से भरे सेमल के फल के फटने से निकलते हुए रेशों जैसी कोमल, विशद, प्रशस्त, सूक्ष्म, श्लक्ष्ण-मुलायम, सुरभित, सुन्दर, भुजमोचक, नीलम, भिंग नील, कज्जल प्रहृष्ट-सुपुष्ट भ्रमरवृन्द जैसे चमकीले काले, घने, घुघराले, छल्लेदार केश उनके मस्तक पर थे, जिस त्वचा पर उनके बाल उगे हुए थे, वह अनार के फूल तथा सोने के समान दीप्तिमय, लाल, निर्मल और चिकनी थी, उनका उत्तमांग-मस्तक का ऊपरी भाग सघन, भरा हुआ और छत्राकार था, उनका ललाट निर्वण-फोड़े-फुन्सी आदि के घाव-चिह्न से रहित, समतल तथा सुन्दर एवं शुद्ध अर्द्ध चन्द्र के सदश भव्य था, उतका मुख पूर्ण चन्द्र के समान सौम्य था, उनके कान मुख के साथ सुन्दर रूप में संयुक्त और प्रमाणोपेत-समुचित प्राकृति के थे, इसलिए वे बड़े सुन्दर लगते थे, उनके कपोल मांसल और परिपुष्ट थे, उनकी भौंहें कुछ खांचे हुए धनुष के समान सुन्दर-टेढ़ी, काले बादल की रेखा के समान कृश-पतली, काली एवं स्निग्ध थीं, उनके नयन खिले हुए पुडरीक-सफेद कमल के समान थे, उनकी आंखें पद्म-कमल की तरह विकसित धवल तथा पत्रल-बरौनी युक्त थीं, उनकी नासिका गरुड़ की तरह-गरुड़ की चोंच की तरह लम्बी, सीधी और उन्नत थी, संस्कारित या सुघटित मूगे की पट्टी-जैसे या बिम्ब फल के सदृश उनके होठ थे, उनके दांतों की श्रेणी निष्कलंक चन्द्रमा के टुकड़े, निर्मल से भी निर्मल शंख, गाय के दूध, फेन, कुंद के फूल, जलकण और कमलनाल के समान सफेद थी, दांत अखंड, परिपूर्ण, अस्फुटित--सुदृढ, टूट-फूट रहित, अविरल-परस्पर सटे हुए, सुस्निग्ध-चिकने-आभामय सुजात—सुन्दराकार थे, अनेक दांत एक दन्त-श्रेणी की तरह प्रतीत होते थे, जिह्वा और तालु अग्नि में तपाये हुए और जल से धोये हुए स्वर्ण के समान लाल थे, उनकी दाढ़ी-मूछ अवस्थित-कभी नहीं बढ़ने वाली, सुविभक्त बहुत हलकी-सी तथा अद्भुत सुन्दरता लिए हुए थी, ठुड्डी मांसल-सुगठित, सुपुष्ट, प्रशस्त तथा चीते की तरह विपुल-विस्तीर्ण थी, ग्रीवा--गर्दन चार अंगुल प्रमाण-- चार अंगुल चौड़ी तथा उत्तम शंख के समान त्रिबलियुक्त एवं उन्नत थी, उनके कन्धे प्रबल भैसे, सूअर, सिंह, चीते, सांड के तथा उत्तम हाथी के कन्धों जैसे परिपूर्ण एवं विस्तीर्ण थे, उनकी भुजाएं युग-गाड़ी के जुए अथवा यूप-यज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org