________________ 192] [उपासकदशांगसूत्र उपासनानिरत रहने लगा। इतना ही अन्तर रहा–उसे उपासना में कोई उपसर्ग नहीं हुआ, पूर्वोक्त रूप में उसने ग्यारह श्रावक-प्रतिमाओं की निर्विघ्न आराधना की। उसका जीवन-क्रम कामदेव की तरह समझना चाहिए। देह-त्याग कर वह सौधर्म-देवलोक में अरुणकील विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ / उसकी आयुस्थिति चार पल्योपम की है / महाविदेह क्षेत्र में वह सिद्ध-मुक्त होगा। "सातवें अंग उपासकदशा का दसवां अध्ययन समाप्त" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org