________________ 130] [उपासकदशांगसूत्र दिव्य ऋद्धि एवं वैभव तुम्हें पुरुषार्थ एवं प्रयत्न से मिला है, तो फिर तुम गोशालक के सिद्धान्त को, जिसमें पुरुषार्थ व प्रयत्न का स्वीकार नहीं है, सुन्दर कैसे कह सकते हो ? और भगवान् महावीर के सिद्धान्त को, जिसमें पुरुषार्थ व प्रयत्न का स्वीकार है, असुन्दर कैसे बतला सकते हो? तुम्हारा कथन मिथ्या है। कुडकौलिक का युक्तियुक्त एवं तर्कपूर्ण कथन सुनकर देव से कुछ उत्तर देते नहीं बना। बह सहम गया। उसने वह अंगूठी एवं दुपट्टा चुपचाप पृथ्वीशिलापट्टक पर रख कर और अपना-सा मुंह लिए वापस लौट गया। ___ शुभ संयोगवश भगवान् महावीर अपने जनपद-विहार के बीच पुनः काम्पिल्यपुर पधारे / ज्योंही कुडकौलिक को ज्ञात हुआ, वह भगवान् को वंदन करने गया / उनका सान्निध्य प्राप्त किया, धर्म-देशना सुनी। / भगवान् महावीर तो सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी थे / जो कुछ घटित हुआ था, उन्हें सब ज्ञात था। उन्होंने कुडकौलिक को सम्बोधित कर अशोकवाटिका में घटित सारी घटना बतलाई और उससे पूछा- क्यों ? क्या यह सब घटित हुआ ? कुडकौलिक ने अत्यन्त विनय और आदरपूर्वक कहा-- प्रभो! आप सब कुछ जानते हैं / जैसा आपने कहा-अक्षरशः वैसा ही हुआ। कुडकौलिक की धार्मिक आस्था और तत्त्वज्ञता पर भगवान् प्रसन्न थे / उन्होंने उसे वर्धापित करते हुए कहा-कुडकौलिक ! तुम धन्य हो, तुमने बहुत अच्छा किया / वहाँ उपस्थित साधु-साध्वियों को प्रेरणा देने हेतु भगवान् ने उनसे कहा---गृहस्थ में रहते हुए भी कुडकौलिक कितना सुयोग्य तत्त्ववेत्ता है ! इसने अन्य मतानुयायी को युक्ति और न्याय से निरुत्तर किया / भगवान् ने यह आशा व्यक्त की कि बारह अंगों का अध्ययन करने वाले साधु-साध्वी तो ऐसा करने में सक्षम हैं ही / उनमें तो ऐसी योग्यता होनी ही चाहिए / कुडकौलिक की घटना को इतना महत्त्व देने का भगवान् का यह अभिप्राय था, प्रत्येक धर्मोपासक अपने धर्म-सिद्धान्तों पर दृढ़ तो रहे ही, साथ ही साथ उसे अपने सिद्धान्तों का ज्ञान भी हो तथा उन्हें औरों के समक्ष उपस्थित करने की योग्यता भी, ताकि उनके साथ धार्मिक चर्चा करने वाले अन्य मतानुयायी व्यक्ति उन्हें प्रभावित न कर सकें। प्रत्युत उनके युक्तियुक्त एवं तर्कपूर्ण विश्लेषण पर वे निरुत्तर हो जाएं। वास्तव में भगवान् महावीर द्वारा सभी धर्मोपासकों को तत्त्वज्ञान में गतिमान रहने की यह प्रेरणा थी। ... कुडकौलिक भगवान् को वंदन, नमन कर वापस अपने स्थान पर लौट आया। भगवान् महावीर अन्य जनपदों में विहार कर गए। कुडकौलिक उत्तरोत्तर साधना-पथ पर अग्रसर होता रहा / यों चौदह वर्ष व्यतीत हो गए / पन्द्रहवें वर्ष उसने अपने बड़े पुत्र को गृहस्थ एवं परिवार का उत्तरदायित्व सौंप कर अपने आपको सर्वथा साधना में लगा दिया। उसके परिणाम उत्तरोत्तर पवित्र होते गए। उसने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं की उपासना की। अन्ततः एक मास की संलेखना और एक मास के अनशन द्वारा समाधिपूर्वक देह-त्याग किया। वह अरुणध्वज विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org