________________ तृतीय अध्ययन : चुलनीपिता 124. उक्लेवो तइयस्स अज्झयणस्स' / एवं खलु, जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बाणारसी नामं नयरी / कोटुए चेइए / जियसत्तू राया। उपक्षेप-उपोद्घातपूर्वक तृतीय अध्ययन का प्रारम्भ यों है : आर्य सुधर्मा ने कहा-जम्बू ! उस काल-वर्तमान अवसर्पिणी के चौथे आरे के अन्त में, उस समय-जब भगवान् महावीर सदेह विद्यमान थे, बाराणसी नामक नगरी थी / कोष्ठक नामक चैत्य था, वहां के राजा का नाम जितशत्रु था। श्रमणोपासक चलनीपिता 125. तत्य णं वाणारसीए नयरीए चुलणीपिया नाम गाहावई परिवसइ, अड्ढे, जाव' अपरिभूए। सामा भारिया / अट्ठ हिरण्ण-कोडीओ निहाण-पउत्ताओ, अट्ठ वुड्डि-पउत्ताओ, अट्ठ पवित्थर-पउत्ताओ, अट्ठ वया, दस-गो-साहस्सिएणं वएणं / जहा आणंदो राईसर जाव सव्व-कज्जवड्ढावए यावि होत्या। सामी समोसढे। परिसा निग्गया / चुलणीपिया वि, जहा आणंदो तहा निग्गओ / तहेव गिहि-धम्म पडिवज्जइ / गोयम-पुच्छा। तहेव सेसं जहा कामदेवस्स जाव' पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म- पत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहरइ / वाराणसी नगरी में चुलनीपिता नामक गाथापति निवास करता या / वह अत्यन्त समृद्ध एवं प्रभावशाली था / उसकी पत्नी का नाम श्यामा था / आठ करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं स्थायी पूजी के रूप में उसके खजाने में थीं, आठ करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं व्यापार-व्यवसाय में लगी थीं तथा पाठ करोड़ स्वर्णमुद्राएं घर के वैभव-धन, धान्य, द्विपद, चतुष्पद आदि साधन-सामग्री में लगी थीं। उसके पाठ गोकूल थे / प्रत्येक गोकूल में दस-दस हजार गाएं थी। गाथापति आनन्द की तरह वह राजा, ऐश्वर्यशाली पुरुष आदि विशिष्ट जनों के सभी प्रकार के कार्यों का सत्परामर्श प्रादि द्वारा वर्धापकआगे बढ़ाने वाला था। 1. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उवासमदसाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते तच्चस्स ___णं भंते ! अज्झयणस्स के अट्ठ पण्णते ? जम्बू ने पूछा-सिद्धिप्राप्त भगवान महावीर ने उपासकदशा के द्वितीय अध्ययन का यदि यह अर्थ----प्राशय प्रतिपादित किया, तो भगवन ! उन्होंने तृतीय अध्ययन का क्या अर्थ बतलाया ? (कृपया कहें।) 3. देखें सूत्र-संख्या 3 4. देखें सूत्र-संख्या 5 5. देखें सूत्र-संख्या 92 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org