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________________ 94] [उपासकदशांगसूत्र सर्परूपधारी उस देव द्वारा यों कहे जाने पर भी कामदेव निर्भीकता से उपासनारत रहा। देव ने दूसरी बार फिर तीसरी बार भी वैसा ही कहा, पर कामदेव पूर्ववत् उपासना में लगा रहा / 109. तए णं से देवे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता आसुरत्ते 4 कामदेवस्स सरसरस्स कायं दुरुहइ, दुरुहित्ता पच्छिम-भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेइ, वेढित्ता तिक्खाहिं विसपरिगयाहि दादाहिं उरंसि चेव निकुट्टेइ / सर्परूपधारी देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भय देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर सर्राटे के साथ उसके शरीर पर चढ़ गया। चढ़ कर पिछले भाग से उसके गले में तीन लपेट लगा दिए। लपेट लगाकर अपने तीखे, जहरीले दांतों से उसकी छाती पर डंक मारा। 110. तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव' अहियासेइ / श्रमणोपासक कामदेव ने उस तीव्र वेदना को सहनशीलता के साथ झेला / देव का पराभव : हिंसा पर अहिंसा की विजय 111. तए णं से देवे सप्प-रूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे संते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसह-सालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं सप्प-रूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं देव-रूवं विउव्वइ / हार-विराइय-बच्छं जाव (कडग-तुडिय-थंभिय-भुयं, अंगय-कुडल-मट्ठ-गंडकण्णपीढ-धारि, विचित्तहत्याभरणं, विचित्तमाला-मउलि-मउड, कल्लाणग-पवरवत्थ-परिहियं, कल्लाणग-पवरमल्लाणुलेवणं, भासुर-बोंदि, पलंवं-वणमालधरं, दिवेणं वण्णेणं, दिवेणं गन्धेणं, दिव्वेणं रूवेणं, दिव्वेणं फासेणं, दिव्वेणं संघाएणं, दिव्वेणं संठाणेणं, दिव्वाए इड्डीए, दिव्वाए जुईए, दिव्वाए पभाए, दिव्वाए छायाए, दिव्वाए अच्चीए, दिब्वेणं तेएणं, दिवाए लेसाए) दस दिसाओ उज्जोवेमाणं पभासेमाणं, पासाईयं दरिसणिज्ज अभिरूवं पडिरूवं दिव्व देवरूवं विउव्वइ, विउव्बित्ता कामदेवस्स समणोवासयस्स पोसह-सालं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता अंतलिक्ख-पडिवन्ने सखिखिणियाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवर-परिहिए कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-हं भो ! कामदेवा समणोवासया ! धन्नेसि णं तुमं, देवाणुप्पिया ! संपुण्णे, कयत्थे, कयलक्खणे, सुलद्धे णं तव देवाणुप्पिया ! माणुस्सए जम्मजीवियफले, जस्स णं तव निग्गंथे पावयणे इमेयारूवा पडिवत्ती लद्धा, पत्ता, अभिसमण्णागया। ___ एवं खलु देवाणुप्पिया! सक्के, देविदे, देव-राया जाव (वज्जपाणी, पुरंदरे, सयक्कऊ, सुहस्सक्खे, मघवं, पागसासणे, दाहिणलोगाहिवई, बत्तीस विमाण-सय-सहस्साहिवई,. एरावणवाहणे, सुरिदे, अरयंबर-वत्थधरे, आलइय-मालमउडे, नव-हेम-चारु-चित्त-चंचल-कुंडल-विलिहिज्जमाणगंडे, भासुरबोंदी, पलंब-वणमाले, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए) सक्कंसि 1. देखें सूत्र-संख्या 97 2. देखें सूत्र-संख्या 106 3. देखें सूत्र--संख्या 97 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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