________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात आत्मा को तपोमय बनाने वाले, महातपस्वी-प्रशस्त और दोघं तप वाले, उदार-प्रधान, घोरकषायादि शत्रुओं के उन्मूलन में कठोर, घोरगुण-दूसरों के लिए दुरनुचर मूलोत्तर गुणों से सम्पन्न, उग्रतपस्वी, अन्यों के लिए कठिन ब्रह्मचर्य में लीन, शारीरिक संस्कारों का त्याग करने वाले--शरीर के प्रति सर्वथा ममत्वहीन, सैकड़ों योजनों में स्थित वस्तु को भस्म कर देने वाली विस्तीर्ण तेजोलेश्या को शरीर में ही लीन रखने वाले -[वियुल तेजोलेश्या का प्रयोग न करने वाले] आर्य सुधर्मा से न बहुत दूर, न बहुत समीप अर्थात उचित स्थान पर, ऊपर घुटने और नीचा मस्तक रखकर ध्यानरूपी कोष्ठ में स्थित होकर संयम और तप से प्रात्मा को भावित करते हुए विचरते थे। जम्बू स्वामी की जिज्ञासा ७-तए णं से अज्जजंबूणामे अणगारे जायसड्ढे, जायसंसए, जायकोउहल्ले, संजातसड्ढे, संजातसंसए, संजातकोउहल्ले, उप्पन्नसड्ढे, उप्पन्नसंसए, उप्पन्नकोउहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे, समुप्पन्नसंसए, समुप्पन्नकोउहल्ले उडाए उठेति / उट्ठाए उद्वित्ता जेणामेव अज्जसुहम्मे थेरे तेणामेव उवागच्छति / उवागच्छित्ता अज्जसुहम्मे थेरे तिक्खुत्तो प्रायाहिणं पयाहिणं करेइ / करेत्ता वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता अज्जसुहम्मस्स थेरस्स पच्चासन्ने नातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहं पंजलिउडे विणएणं पज्जुवासमाणे एवं वयासी। तत्पश्चात् आर्य जम्बू नामक अनगार को तत्त्व के विषय में श्रद्धा (जिज्ञासा) हुई, संशय हुअा, कुतूहल हुअा, विशेषरूप से श्रद्धा हुई, विशेष रूप से संशय हुआ और विशेष रूप से कुतूहल हुया / श्रद्धा उत्पन्न हुई, संशय उत्पन्न हुअा और कुतूहल उत्पन्न हुआ। विशेषरूप से श्रद्धा उत्पन्न हुई, विशेष रूप से संशय उत्पन्न हुआ और विशेष रूप से कुतूहल हुा / तब वह उत्थान करके उठ खड़े हुए और उठ करके जहां आर्य सुधर्मा स्थविर थे, वहीं आये / आकर प्रार्य सुधर्मा स्थविर की तीन बार दक्षिण दिशा से प्रारम्भ करके प्रदक्षिणा की / प्रदक्षिणा करके वाणी से स्तुति की और काया से नमस्कार किया / स्तुति और नमस्कार करके प्रार्य सुधर्मा स्थविर से न बहुत दूर और न बहुत समीप-उचित स्थान पर स्थित होकर, सुनने की इच्छा करते हुए सन्मुख दोनों हाथ जोड़कर विनयपूर्वक पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले विवेचन–श्रद्धा का अर्थ यहाँ इच्छा है। जम्बूस्वामी को तत्त्व जानने की इच्छा हुई, क्योंकि श्री वर्धमान स्वामी ने जैसे पाँचवें अङ्ग का अर्थ कहा है, उसी प्रकार छठे अङ्ग का अर्थ कहा है या नहीं ? इस प्रकार का संशय उत्पन्न हुमा / संशय उत्पन्न होने का कारण यह था कि 'पंचम अङ्ग में समस्त पदार्थों का स्वरूप बतला दिया गया है तो फिर छठे अङ्ग में क्या होगा?' इस प्रकार का कुतूहल हुग्रा / इस प्रकार श्रद्धा, संशय और कुतूहल में कार्यकारण-भाव है / अर्थात् कुतूहल से संशय का जन्म हुग्रा और संशय ने श्रद्धा-जानने को इच्छा उत्पन्न हुई। जात का अर्थ सामान्य रूप से होना, संजात का अर्थ विशेष रूप से होना, उत्पन्न का अर्थ सामान्य रूप से उत्पन्न होना और समुत्पन्न का अर्थ विशेष रूप से उत्पन्न होना है। ८-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं, आइगरेणं, तित्थयरेणं, सयंसंबुद्धणं, पुरिसुत्तमेणं, पुरिससीहेणं, पुरिसवरपुंडरीएणं, पुरिसवर-गंधहत्थिणा, लोगुत्तमेणं लोगनाहेणं, लोगहिएणं, लोगपईवेणं, लोग-पज्जोयगरेणं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org