________________ तइयं अज्झयणं [तृतीय अध्ययन] रजनी ४०-जइ गं भंते ! तइयस्स उक्खेवओ [समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स बिइयज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते, तइयस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महाबीरेणं के अट्ठ पण्णते? तीसरे अध्ययन का उत्क्षेप (उपोद्घात) इस प्रकार है-'भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने धर्मकथा के प्रथम वर्ग के द्वितीय अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ कहा है तो, भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर ने तीसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? ४१-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसोलए चेइए, एवं जहेव राई तहेव रयणी वि / गवरं-आमलकप्पा गयरी, रयणी (रयणे) गाहावई, रयणसिरी भारिया, रयणी दारिया, सेसं तहेव जाव अंते काहिइ। जम्बूस्वामी के प्रश्न के उत्तर में श्री सुधर्मा ने कहा-जम्बू ! राजगृह नगर था, गुणशील चैत्य था इत्यादि जो वृत्तान्त राजी के विषय में कहा गया है, वही सब रजनी के विषय में भी नाट्यविधि दिखलाने प्रादि का वृत्तान्त कहना चाहिए। विशेषता यह है-आमलकल्पा नगरी में रजनी (रयण-रत्न ?) नामक गाथापति था। उसकी पत्नी का नाम रजनीश्री था। उसकी पुत्री का भी नाम रजनी था / शेष सब वृत्तान्त पूर्ववत् समझ लेना चाहिए, यावत् वह महाविदेह क्षेत्र से मुक्ति प्राप्त करेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org