________________ 538 ] [ ज्ञाताधर्मकथा ३७-तेणं कालेणं तेणं समएणं राई देवी चमरचंचाए रायहाणीए एवं जहा काली तहेव आगया, पट्टविहिं उवदंसेत्ता पडिगया। 'भंते ति' भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता पुश्वभवपुच्छा। उस काल और उस समय में राजी नामक देवी चमरचंचा राजधानी से काली देवी के समान भगवान् की सेवा में आई और नाट्यविधि दिखला कर चली गई। उस समय 'हे भगवन् !' इस प्रकार कह कर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करके राजी देवी के पूर्वभव को पृच्छा की / (तब भगवान् ने आगे कहा जाने वाला वृत्तान्त कहा)। ३८-एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं आमलकप्पा णयरी, अंबसालवणे चेइए, जियसत्त राया, राई गाहावई, राईसिरी भारिया, राई दारिया, पासस्स समोसरणं, राई दारिया जहेव काली तहेव णिक्खंता तहेव सरीरबाउसिया, तं चेव सव्वं जाव अंतं काहिइ। हे गौतम ! उस काल और उस समय में आमलकल्पा नगरी थी। अाम्रशालवन नामक उद्यान था। जितशत्रु राजा था। राजी नामक गाथापति था। उसकी पत्नी का नाम राजश्री था। राजी उसकी पुत्री थी। किसी समय पार्श्व तीर्थकर पधारे / काली की भांति राजी दारिका भी भगवान् को वन्दना करने के लिए निकली / वह भी काली की तरह दीक्षित होकर शरीरबकुश हो गई / शेष समस्त वृत्तान्त काली के समान ही समझना चाहिए, यावत् वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेगी। ३९–एवं खलु जंबू ! बिइयज्मयणस्स निक्खेवओ। इस प्रकार हे जम्बू ! द्वितीय अध्ययन का निक्षेप जानना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org