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________________ 516 ] [ ज्ञाताधर्मकथा कंडरोक को रुग्णता १२-तए णं तस्स कंडरीयस्स अणगारस्स तेहि अंतेहि य पंतेहि य जहा सेलगस्स जाव दाहवक्कंतीए यावि विहरइ / तत्पश्चात् कंडरीक अनगार के शरीर में अन्त-प्रान्त अर्थात् रूखे-सूखे आहार के कारण शैलक मुनि के समान यावत् दाह-ज्वर उत्पन्न हो गया। वे रुग्ण होकर रहने लगे। . १३-तए णं थेरा अन्नया कयाई जेणेव पोंडरोगिणी तेणेव उवागच्छंति, उवाच्छित्ता गलिणिवणे समोसढा, पोंडरीए णिग्गए, धम्मं सुणेइ / तए णं पुंडरीए राया धम्म सोच्चा जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कंडरोयं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता कंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगं सव्वाबाहं सरोयं पासइ, पासित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छहउवागच्छित्ता थेरे भगवते वंदड, वंदह, णमंसह, वंचित्ता णमंसित्ता एवं वयासो-'अहं णं भंते ! कंडरीयस्स अणगारस्स अहापवत्तेहि ओसहभेसज्जेहिं जाव तेइच्छं आउट्टामि, तं तुम्भे गं भंते ! मम जाणसालासु समोसरह / ' तत्पश्चात् एक बार किसी समय स्थविर भगवंत पुण्डरीकिणी नगरी में पधारे और नलिनीवन उद्यान में ठहरे / तब पुंडरीक राजमहल से निकला और उसने धर्मदेशना श्रवण की। तत्पश्चात् धर्म सुनकर पुडरीक राजा कंडरीक अनगार के पास गया / वहाँ जाकर कंडरीक मुनि की वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दना-नमस्कार करके उसने कंडरीक मुनि का शरीर सब प्रकार की बाधा से युक्त और रोग से आक्रान्त देखा / यह देखकर राजा स्थविर भगवंत के पास गया / जाकर स्थविर भगवंत को वन्दन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार निवेदन किया---'भगवन् ! मैं कंडरीक अनगार की यथाप्रवृत्त (आपकी प्रवृत्ति-समाचारी के अनुकूल) औषध और भेषज से चिकित्सा कराता हूँ ( करना चाहता हूँ ) अतः भगषन् ! आप मेरी यानशाला में पधारिये।' १४-तए णं थेरा भगवंतो पुंडरीयस्स रणो एयमट्ठ पडिसुर्णेति, पडिसुणित्ता जाव उवसंपज्जित्ता गं विहरति / तए णं पुंडरीए राया जहा मंडुए सेलगस्स जाव वलियसरोरे जाए / तब स्थविर भगवान् ने पुडरीक राजा का यह निवेदन स्वीकार कर लिया। स्वीकार करके यावत् यानशाला में रहने की आज्ञा लेकर विचरने लगे-वहाँ रहने लगे / तत्पश्चात् जैसे मंडुक राजा ने शैलक ऋषि की चिकित्सा करवाई, उसी प्रकार राजा पुडरीक ने कंडरीक की करवाई। चिकित्सा हो जाने पर कंडरीक अनगार बलवान् शरीर वाले हो गये / कंडरीक मुनि को शिथिलता १५--तए णं थेरा भगवंतो पोंडरीयं रायं पुच्छंति, पुच्छित्ता बहिया जणवयविहारं विहरंति / ___तए णं से कंडरीए ताओ रोयायंकाओ विप्पमुक्के समाणे तंसि मणुण्णंसि असण-पाण-खाइमसाइमंसि मुच्छिए गिद्धे गढिए अन्झोववन्ने, णो संचाएइ पोंडरीयं आपुच्छित्ता बहिया अब्भुज्जएणं जणवयविहारेणं विहरित्तए / तत्थेव ओसणे जाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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