________________ अठारहवाँ अध्ययन : सुसुमा ] [ 499 होकर राजगृह नगर से बाहर निकला / निकल कर जहाँ सिंहगुफा नामक चोरपल्ली थी, वहाँ पहुँचा। पहुँच कर चोरसेनापति विजय के पास पहुँच कर उसकी शरण में जा कर रहने लगा। १५-तए णं से चिलाए दासचेडे विजयस्स चोरसेणावइस्स अग्ग-असि-लद्विग्गाहे जाए यावि होत्था / जाहे वि य णं से विजए चोरसेणावई गामघायं वा जाव [नगरघायं वा गोगहणं वा बंदिग्गहणं वा] पंथकोट्टि वा काउं वच्चइ, ताहे वि य णं से चिलाए दासचेडे सुबहंपि हु कूवियबलं हयमहियं जाव' पडिसेहेइ, पुणरवि लट्ठे कयकज्जे अणहसमग्गे सीहगुहं चोरपल्लि हव्वमागच्छइ / तत्पश्चात् वह दासचेट चिलात विजय नामक चोरसेनापति के यहाँ प्रधान खड्गधारी या खड़ग और यष्टि का धारक हो गया। अतएव जब भी वह विजय चोरसेनापति ग्राम के लिए [नगर-घात करने के लिए, गायों का अपहरण करने या बंदियों को पकड़ने अथवा] पथिकों को मारने-कूटने के लिए जाता था, उस समय दासचेट चिलात बहुत-सी कविय (चोरी का माल छीनने के लिए आने वाली) सेना को हत एवं मथित करके रोकता था-भगा देता था और फिर उस धन आदि को लेकर अपना कार्य करके सिंहगुफा चोरपल्ली में सकुशल वापिस आ जाता था। १६-तए णं से विजए चोरसेणावई चिलायं तक्करं बहूईओ चोरविज्जाओ य चोरमंते य चोरमायाओ य चोरनिगडीओ य सिक्खावेइ / उस विजय चोरसेनापति ने चिलात तस्कर को बहुत-सी चौरविद्याएं चोरमंत्र चोरमायाएँ और चोर-निकृतियाँ (चोरों के योग्य छल-कपट) सिखला दीं। १७–तए णं से विजए चोरसेणावई अन्नया कयाई कालधम्मुणा संजुत्ते यावि होत्था। तए णं ताई पंच चोरसयाई विजयस्स चोरसेणावइस्स महया महया इड्डी-सक्कार-समुदएणं णीहरणं करेंति, करित्ता बहूई लोइयाई मयकिच्चाई करेई, करित्ता जाव [कालेणं] विगयसोया जाया यावि होत्था। तत्पश्चात् विजय चोर किसो समय मृत्यु को प्राप्त हुआ-कालधर्म से युक्त हुआ। तब उन पांच सौ चोरों ने बड़े ठाठ और सत्कार के समूह के साथ विजय चोरसेनापति का नीहरण कियाश्मशान में ले जाने की क्रिया की / फिर बहुत-से लौकिक मृतककृत्य किये / कुछ समय बीत जाने पर वे शोकरहित हो गये। चिलात सेनापति बना १८-तए णं ताइं पंच चोरसयाइं अन्नमन्नं सदावेंति, सद्दाविता एवं वयासी--'एवं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! विजए चोरसेणावई कालधम्मुणा संजुत्ते, अयं च णं चिलाए तक्करे विजएणं चोरसेणावइणा बहूओ चोरविज्जाओ य जाव' सिक्खाविए, तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! चिलायं तक्करं सीहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचित्तए / ' त्ति कटु अन्नमन्नस्स एयमझें पडिसुणेति, पडिसुणित्ता चिलायं तक्करं तीए सोहगुहाए चोरसेणावइत्ताए अभिसिचंति / तए णं से चिलाए चोरसेणाबई जाए अहम्मिए जाव विहरइ / 1. प्र. 16 सूत्र 179 2. अ. 18 सूत्र 16 . 3. अ. 18 सूत्र 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org