________________ 488 ] { ज्ञाताधर्मकथा (10) प्रमादमरण-प्रमादवश होकर तथा घोर संकल्प-विकल्पमय परिणामों के साथ प्राणों का परित्याग करना। (11) वार्तमरण- इन्द्रियों के वशवर्ती होकर कषाय के वशीभूत होकर, वेदना-वश होकर या हास्यवश होकर मरना / (12) विप्रणमरण-संयम, व्रत आदि का निर्वाह न होने के कारण प्राघात करना / (13) गृद्धपृष्ठमरण-संग्राम में शूरवीरता के साथ प्राण त्यागना अथवा किसी विशालकाय प्राणी के मृत कलेवर में प्रवेश करके मरना / (14) भक्तप्रत्याख्यानमरण-विधिपूर्वक आहार का त्याग करके यावज्जीवन प्रत्याख्यान करके शरीर त्यागना / (15) इंगितमरण-समाधिमरण ग्रहण करके दूसरे से वैयावृत्य (सेवा) न कराते हुए शरीर को त्यागना। (16) पादपोपगमनमरण-आहार और शरीर का यावज्जीवन त्याग करके स्वेच्छापूर्वक हलन-चलन आदि क्रियाओं का भी त्याग करके समाधिपूर्वक प्राणोत्सर्ग करना / (17) केवलिमरण-केवलज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् मोक्ष-गमन करते समय अन्तिम रूप से शरीर-त्याग करना / उल्लिखित मरणों में से यहाँ और अगली गाथाओं में ग्यारहवें मरण का उल्लेख किया गया है। जो अपनी इन्द्रियों का संवर करता है, उनके वशीभूत नहीं होता किन्तु उनको अपने वश में करता है, उसे वशार्त्तमरण जैसे अकल्याणकारी मरण का पात्र नहीं बनना पड़ता। थण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-गम्वियविलासियगईसु / रूवेसु जे न सत्ता, वसट्टमरणं न ते मरए // 12 // स्त्रियों के स्तन, जघन, मुख, हाथ, पैर, नयन तथा गर्वयुक्त विलास वाली गति आदि समस्त रूपों में जो पासक्त नहीं होते वे वशार्तमरण नहीं मरते / / 12 / / अगरु-वरपवरधूवण-उउमल्लाणुलेवविहीसु / गंधेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए // 13 // ___ उत्तम अगर, श्रेष्ठ धूप, विविध ऋतुओं में वृद्धि को प्राप्त होने वाले पुष्पों की मालाओं तथा श्रीखण्ड आदि के लेपन की गन्ध में जो आसक्त नहीं होते, उन्हें वशार्तमरण नहीं मरना पड़ता // 13 // तित्त-कडुयं कसायंब-महुरं बहुखज्ज-पेज्ज-लेज्झेसु / आसायंमि न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए // 14 // तिक्त, कटुक, कसैले, खट्टे और मीठे खाद्य, पेय और लेह्य (चाटने योग्य) पदार्थों के प्रास्वादन में जो गृद्ध नहीं होते, वे वशा-मरण नहीं मरते // 14 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org