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________________ सत्तरहवां अध्ययन : आकीर्ण ] [477 हरिरेणु-सोणिसुत्तग-सकविल-मज्जार-पायकुक्कुड-वोंडसमुग्गयसामवण्णा / गोहूमगोरंग-गोरपाडलगोरा, पवालवण्णा य धूमवण्णा य केइ / / 1 / / तलपत्त-रिट्ठवण्णा य, सालिवण्णा य भासवण्णा य केइ / जंपिय-तिल-कीडगा य, सोलोयरिट्टगा य पुंडपइया य कणगपिट्ठा य केइ / / 2 / / चक्कागपिट्ठवण्णा सारसवण्णा य हंसवण्णा य केइ / केइत्थ अब्भवण्णा पक्कतल-मेघवण्णा य बाहुवण्णा य / / 3 / / संझाणुरागसरिसा सुयमुह-गुजद्धराग-सरिसत्थ केइ। एला-पाडलगोरा सामलया-गवलसामला पुणो केइ / / 4 / / बहवे अण्णे अणिद्देसा, सामा कासीसरत्त-पीया, अच्चंत विसुद्धा वि य णं पाइण्णग-जाइ-कुलविणीय-गयमच्छरा। हयवरा जहोवएस-कम्मवाहिणो वि य णं सिक्खा विणीयविणया, लंघण-वग्गण-धावण-तिवई-जईण-सिक्खियगई। कि ते ? मणसा वि उव्विहंताई अणेगाई आससयाई पासंति / / भावार्य-कालिक द्वीप में पहुंचने पर नौका-वणिकों ने चांदी, सोने, रत्नों और हीरों की खानों के साथ विविध वर्ण वाले अश्वों को भी देखा। उन अश्वों में कोई-कोई नीले वर्ण की रेणु के समान, श्रोणिसूत्रक अर्थात् बालकों की कमर में बाँधने के काले डोरे के समान तथा मार्जार, पादुकुक्कुट [विशेष जाति का कुकड़ा] एवं कच्चे कपास के फल के समान श्याम वर्ण वाले थे। कोई गेहूँ और पाटल पुष्प के समान गौर वर्ण वाले थे, कोई विद्रुम-मूगा के समान अथवा नवीन कोंपल के सदृश रक्तवर्ण-लाल थे, कोई धूम्रवर्ण-पाण्डुर धुए जैसे रंग के ये / कोई तालवृक्ष के पत्तों के सरीखे तो कोई रिष्ठा-मदिरा सरीखे वर्ण वाले थे। कोई शालिवर्णचावल जैसे रंग वाले और कोई भस्म जैसे रंग वाले थे। कोई पुराने तिलों के कीड़ों जैसे, कोई चमकदार रिष्टक रत्न जैसे वर्ण वाले, कोई धवल श्वेत पैरों वाले, कोई कनकपृष्ठ-सुनहरी पीठ वाले थे। कोई सारस पक्षी की पीठ, चक्रवाक एवं हंस के समान श्वेत थे / कोई मेघ-वर्ण और कोई तालवृक्ष के पत्तों के समान वर्ण वाले थे। कोई रंगबिरंगे अर्थात् अनेक रंगों वाले थे। कोई संध्याकाल की लालिमा, तोते की चोंच तथा गुजा [चिरमी के अर्धभाग के सदृश लाल थे, कोई एला-पाटल या एला और पाटल जैसे रंग के थे। कोई प्रियंगु-लता और महिषशग के समान श्यामवर्ण थे। __ कोई-कोई अश्व ऐसे थे कि उनके वर्ण का निर्देश-कथन ही नहीं किया जा सकता, जैसे कोई श्यामाक (धान्य विशेष), काशीष (एक रक्तवर्ण द्रव्य), रक्त और पीत थे-- अर्थात् चितकबरे (अनेक रंगों के) थे / वे अश्व विशुद्ध-निर्दोष थे। प्राकीर्ण अर्थात् वेगवत्ता आदि गुणों वाली जाति एवं कूल के थे / विनीत, प्रशिक्षित (ट्रेनिंग पाए हुए) थे एवं परस्पर असहनशीलता से रहित थे-जैसे अन्य अश्व दूसरे अश्वों को सहन नहीं करते, एक दूसरे के निकट आते ही लड़ने लगते हैं, वैसे वे अश्व नहीं थे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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