________________ सोलहवां अध्ययन : द्रौपदी / उनकी तीन बल वाली भकुटि ललाट पर चढ़ गई / वह बोले-'मोह, जब मैंने दो लाख योजन विस्तीर्ण लवणसमुद्र को पार करके पद्मनाभ को हत और मथित करके, यावत् पराजित करके अमरकंका राजधानी को तहस-नहस किया और अपने हाथों से द्रौपदी लाकर तुम्हें सौंपी, तब तुम्हें मेरा माहात्म्य नहीं मालूम हुआ ! अब तुम मेरा माहात्म्य जान लोगे ! इस प्रकार कहकर उन्होंने हाथ में एक लोहदण्ड लिया और पाण्डवों के रथ को चूर-चूर कर दिया। रथ चूर-चूर करके उन्हें देशनिर्वासन की आज्ञा दी / फिर उस स्थान पर रथमर्दन नामक कोट स्थापित किया---रथमर्दन तीर्थ की स्थापना की। २०९--तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव सए खंधावारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सएणं खंधावारेणं सद्धि अभिसमन्नागए यावि होत्था / तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव बारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता बारवई णरि अणुपविसइ। तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव अपनी सेना के पड़ाव (छावनी) में आये / पाकर अपनी सेना के साथ मिल गये / उसके पश्चात् कृष्ण वासुदेव जहाँ द्वारका नगरी थी, वहाँ आये / पाकर द्वारका नगरी में प्रविष्ट हए / २१०-तए णं ते पंच पंडवा जेणेव हस्थिणाउरे गयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता जेणेव पंड तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव एवं वयासी-'एवं खलु ताओ! अम्हे कण्हेणं णिविसया आणत्ता।' ___तए णं पंडुराया ते पंच पंडवे एवं वयासी--'कहं णं पुत्ता ! तुब्भे कण्हेणं बासुदेवेणं णिव्विसया आणता?' तए णं ते पंच पंडवा पंडुरायं एवं क्यासो-'एवं खलु ताओ ! अम्हे अमरकंकाओ पडिनियत्ता लवणसमुदं दोन्नि जोयणसयसहस्साई वीइवइत्था तए णं से कण्हे वासुदेवे अम्हे एवं वयासी--'गच्छह णं तुब्भे देवाणप्पिया! गंगामहादि उत्तरह' जाव चिट्रह, ताव अहं एवं तहेव जाव चिठेमो / तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्टियं लवणाहिवई दळूण तं चेव सव्वं, नवरं कण्हस्स चिता ण जुज्ज (बुच्च) इ, जाव अम्हे णिविसए आणवेइ।' तत्पश्चात् वे पांचों पाडण्व हस्तिनापुर नगर आये / पाण्डु राजा के पास पहुँचे / वहाँ पहुँच कर और हाथ जोड़ कर बोले---'हे तात ! कृष्ण ने हमें देशनिर्वासन की आज्ञा दी है।' तब पाण्डु राजा ने पांच पाण्डवों से प्रश्न किया--'पुत्रो ! किस कारण वासुदेव ने तुम्हें देश निर्वासन की प्राज्ञा दी ?' तब पांच पाण्डवों ने पाण्डु राजा को उत्तर दिया-तात ! हम लोग अमरकंका से लौटे और दो लाख योजन विस्तीर्ण लवणसमुद्र को पार कर चुके, तब कृष्ण वासुदेव ने हमसे कहादेवानुप्रियो ! तुम लोग चलो, गंगा महानदी पार करो यावत् मेरी प्रतीक्षा करते हुए ठहरना / तब तक मैं सुस्थित देव से मिलकर आता हूँ---इत्यादि पूर्ववत् कहना / हम लोग गंगा महानदी पार करके नौका छिपा कर उनकी राह देखते ठहरे / तदनन्तर कृष्ण बासुदेव लवणसमुद्र के अधिपति १.अ. 16. सूत्र 204-207 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org