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________________ 454] [ ज्ञाताधर्मकथा तए णं पंच पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वघासी-'अम्हे णं सामी ! जुज्झामो, तुम्भे पेच्छह / ' तए थे पंच पंडवे सन्नद्ध जाव पहरणा रहे दुरुहंति, दुरूहित्ता जेणेव पउमनाभे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासो--'अम्हे पउमणाभे वा राय त्ति कटु पउमनाभेणं सद्धि संपलग्गा यावि होत्या। तत्पश्चात् वासुदेव ने पद्मनाभ राजा को आता देखा। देख कर वह पांचों पाण्डवों से बोले-'अरे बालको! तुम पद्मनाभ के साथ युद्ध करोगे या युद्ध देखोगे?' तब पांच पाण्डवों ने कृष्ण वासुदेव से कहा---'स्वामिन् ! हम युद्ध करेंगे और आप हमारा युद्ध देखिए / ' तत्पश्चात् पांचों पाण्डव तैयार होकर यावत् शस्त्र लेकर रथ पर सवार हुए और जहाँ पद्मनाभ था, वहाँ पहुँचे / पहुँच कर 'आज हम हैं या पद्मनाभ राजा है।' ऐसा कहकर वे युद्ध करने में जुट गये। पाण्डवों का पराजय १८६-तए णं से पउमनाभे राया ते पंच पंडवे खिप्पामेव हय-महिय-पवरवीर-घाइयविवडियचिधद्धय-पडागे जाव [किच्छोवगयपाणे] दिसोदिसि पडिसेहेइ / तए णं ते पंच पंडवा पउमणाभेण रण्णा हयमहियपवरवीर-घाइयविवडिय जाव पडिसेहिया समाणा अस्थामा जाव आधारणिज्ज ति कटु जेणेब कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छति / तए णं से कण्हे वासुदेवे ते पंच पंडवे एवं वयासो-'कहण्णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! पउमनाभेण रण्णा सद्धि संपलग्गा ?' तए णं ते पंच पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वयासो-'एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे तुम्भेहि अब्भणुन्नाया समाणा सन्नद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया रहे दुरूहामो, दुरूहित्ता जेणेव पउमणाभे जाव पडिसेहइ / ' तत्पश्चात् पद्मनाभ राजा ने उन पांचों पाण्डवों पर शीघ्र ही शस्त्र से प्रहार किया, उनके अहंकार को मथ डाला और उनकी उत्तम चिह्न से चिह्नित पताका गिरा दी। मुश्किल से उनके प्राणों की रक्षा हुई / उसने उन्हें इधर-उधर भगा दिया। तब वे पांचों पाण्डव पद्मनाभ राजा द्वारा शस्त्र से आहत, मथित अहंकार वाले और पतित पताका वाले होकर यावत् पद्मनाभ के द्वारा भगाए हुए, शत्रुसेना का निराकरण करने में असमर्थ होकर, वासुदेव कृष्ण के पास आये / तब वासुदेव कृष्ण ने पांचों पाण्डवों से कहा-'देवानुप्रियो ! तुम लोग पद्मनाभ राजा के साथ किस प्रकार (किस शर्त के साथ) युद्ध में संलग्न हुए थे?' ___ तब पांचों पाण्डवों ने कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार कहा-'देवानुप्रिय ! हम आपकी आज्ञा पाकर सुसज्जित होकर रथ पर आरूढ हुए। आरूढ होकर पद्मनाभ के सामने गये; इत्यादि सब पूर्ववत् कहना चाहिए, यावत् उसने हमें भगा दिया / ' १८७--तए णं कण्हे वासुदेवे ते पंच पंडवे एवं बयासी-'जइ णं तुम्भे देवाणुप्पिया ! एवं वयंता-अम्हे, णो फ्उमणाभे राय त्ति पउमणाभेणं सद्धि संपलग्गंता, तो णं तुम्भे णो पउमनाहे For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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