________________ सोलहवां अध्यध्यन : द्रौपदी ] [ 427 १००----छठें दूयं महुरं नरि, तत्थ णं तुम धरं रायं करयल तहेव जाव समोसरह / छठा दूत मथुरा नगरी भेजा। उससे कहा--तुम धर नामक राजा को हाथ जोड़ कर यावत् कहना स्वयंवर में पधारिये / १०१--सत्तमं दूयं रायगिहं नगरं, तत्थ णं तुमं सहदेवं जरासिंधुसुयं करयल तहेव जाव समोसरह / सातवाँ दूत राजगृह नगर भेजा / उससे कहा तुम जरासिन्धु के पुत्र सहदेव राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना यावत स्वयंवर में पधारिए। १०२–अट्ठमं दूयं कोडिण्णं नयरं, तत्थ तं तुम रुपि भेसगसुयं करयल तहेव जाव समोसरह / आठवां दूत कौण्डिन्य नगर भेजा / उससे कहा-तुम भीष्मक के पुत्र रुक्मी राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारो। १०३-नवमं दूयं विराटनगरं तत्थ णं तुमं कोयगं भाउसयसमग्गं करयल तहेव जाव समोसरह / नौवां दूत विराटनगर भेजा। उससे कहा-तुम सौ भाइयों सहित कीचक राजा को हाथ जोड़कर उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारो। १०४–दसमं दूयं अवसेसेसु य गामागरनगरेसु अणेगाई रायसहस्साई जाव समोसरह / दसवां दूत शेष ग्राम, आकर, नगर आदि में भेजा / उससे कहा-तुम वहाँ के अनेक सहस्र राजानों को उसी प्रकार कहना, यावत् स्वयंवर में पधारो। १०५-तए णं से दूए तहेव निग्गच्छइ, जेणेव गामागर जाव समोसरह / तत्पश्चात् वह दूत उसी प्रकार निकला और जहाँ ग्राम, आकर, नगर आदि थे वहाँ जाकर सब राजाओं को उसी प्रकार कहा-यावत् स्वयंवर में पधारो। १०६--तए णं ताई अणेगा रायसहस्सा तस्स दूयस्स अंतिए एयमझें सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा तं दूयं सक्कारेंति, संमाणेति, सक्कारिता संमाणित्ता पडिविसज्जिति / तत्पश्चात् अनेक हजार राजाओं ने उस दूत से यह अर्थ-संदेश सुनकर और समझ कर हृष्टतुष्ट होकर उस दूत का सत्कार-सन्मान करके उसे विदा किया / १०७--तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा पत्तेयं पत्तेयं व्हाया संनद्धबद्धवम्मियकवया हत्थिखंधवरगया हयगयरहपवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धि संपरिबुडा महया भडचडगररहपहगरविंदपरिक्खिता सहि सरहिं नगरेहितो अभिनिग्गच्छंति, अभिनिग्गच्छित्ता जेणेवे पंचाले जणवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org